अटूट रिश्ता
वाकई कितना गहरा और अटूट रिश्ता है –
आँख, कान, नाक और गले का।
कोई सुनता ही नहीं हमारी बात
जब तक अपनी आँखों से देख न ले गांधी छाप,
या कि तर न कर ले हलक पसंदीदा पेय से,
तभी तो सूँघ कर करते हैं वे ही काम,
जिनमें होता है मनभावन गँध का अहसास।
अब तो मान ही लो
कि आम इंसान से कहीं ज्यादा क्षमताएँ होती हैं
भिखारियों में – चाहे छोटे हों या बड़े,
फुटपाथी हों या दफ्तरी
कुर्सीनशीन हों या गद्दीनशीन
— डॉ. दीपक आचार्य