पड़ोसन का कंफ्यूजन
बच्चों का मन एकदम साफ और निष्कपट होता है। उनके मन में छल, कपट, राग, द्वेष का कोई स्थान नहीं होता। बच्चों की यही निष्छलता कभी-कभी बड़ों के लिए सरदर्द का कारण भी बन जाता है। अभी पिछले हफ्ते की ही बात है। मेरे सात वर्षीय बेटे ने बड़े ही मासूमियत से पड़ोसिन से पूछा, “आंटी जी, आपका असली नाम क्या है ?”
पड़ोसिन ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा, “क्यों बेटा, आपको मेरा नाम क्यों जानना है ?”
बेटे ने उसी भोलेपन से जवाब दिया, “आंटी जी, आपके नाम पर बड़ा कंफ्यूजन है। इसलिए पूछ रहा हूँ।”
पड़ोसिन ने आश्चर्य से पूछा, “कैसा कंफ्यूजन बेटा ?”
बेटे का जवाब एकदम निष्छल था, “आंटी जी, पापा आपको मिस इंडिया कहते हैं, जबकि मेरी मम्मी डायन, तो बुआ जी मोटी भैंस, चाचू तीखी मिर्ची तो बाजू वाले मिश्राजी डार्लिंग कहते हैं। अंकल जी तो आपको अक्सर हे भागवान कहते हैं। अब इतने सारे नाम होने से कंफ्यूजन तो होगा ही न।”
अब आगे का हाल ये है कि लगभग हफ्ते भर से उस खूबसूरत पड़ोसिन से हमारी बातचीत बंद है।
— डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा