जीने का हक
रात को सबके सो जाने के बाद मालती ने अपने पति जयंत के कान में धीरे से फुसफुसाया, ‘‘अजी सो गए क्या ?’’
‘‘नहीं, क्या बात है मालती ? मैं देख रहा हूँ कि तुम पिछले कुछ दिनों से बहुत ही परेशान लग रही हो, आखिर हुआ क्या ?’’ जयंत ने पूछा।
‘‘परेशानी की ही तो बात है जी। हमारी रीना अब तेरह साल की हो चुकी है।’’ कहकर रुक गई वह।
‘‘तो क्या हुआ ? उम्र तो रुकने से रही न ? इसमें परेशान होने की क्या बात है ?’’ जयंत ने सहज भाव से कहा।
‘‘उसे अब तक महीना शुरु नहीं हुआ है।’’ मालती ने बताया।
‘‘तो तुम उसे किसी अच्छी लेडी डॉक्टर को दिखाओ न।’’ जयंत ने पुनः सहज भाव से कहा।
‘‘दिखा चुकी हूँ।’’
‘‘क्या कहा डॉक्टर ने ?’’
‘‘डॉक्टरनी साहिबा ने जाँच करके बताया है कि इसे कभी महीना ही नहीं आएगा।’’ मालती ने मानो जयंत के कानों में गरम लावा उड़ेल दिया।
‘‘क्या… ? ऐसा कैसे हो सकता है ?’’ बड़ी मुश्किल से बोल सका वह। उसे अपने कानों पर मानो विश्वास ही नहीं हो रहा था।
‘‘हाँ, ऐसा ही हुआ है। ईश्वर ने बड़ा ही क्रूर मजाक किया है हमारे साथ। डॉक्टरनी ने बताया है कि हमारी रीना न तो पूरी तरह से लड़का है और न ही पूरी लड़की है।’’ मालती रोते-रोते एक ही साँस में बोल गई।
‘‘तो…’’
‘‘तो क्या…. ? इसे कहीं बहुत दूर छोड़ आओ। इतनी दूर की इसकी मनहूस साया हमारे परिवार पर न पड़े। कल को जब लोगों को पता चलेगा कि यह हिंजड़ा है, तो क्या इज्जत रह जाएगी समाज में हमारी ? क्या मुँह दिखाएँगे बिरादरी में हम ?’’ मालती ने तो मानो रीना से छुटकारा पाना का अंतिम निर्णय ले लिया था।
‘‘पागल हो गई है तू मालती ? होश में तो है ? अरे, नौ महीने तक अपने पेट में पाला है इसे तुमने ? ये हमारी तीनों बेटियों में सबसे होनहार है। कल तक तो इस पर अपना जान न्यौछावर कर रही थी और आज इससे मुक्ति पाने की बातें कर रही है।’’ जयंत बोला। अब तक जयंत का दिमाग शांत हो चुका था।
‘‘नौ महीने तो मैंने अपने उन दो बच्चों को भी पेट में पाला था। अब इस चुड़ैल की वजह से उनके भविष्य से तो खिलवाड़ तो नहीं कर सकती मैं। कल को जब इसकी वजह से हमारी बदनामी होगी, तो उन पर क्या प्रभाव पड़ेगा ? आज तो मैंने डाॅक्टरनी साहिबा को कह दिया कि किसी को ये बात मत बताना।’’ मालती कुछ भी सुनने को तैयार नहीं लग रही थी।
‘‘अपने उन दो बच्चों के भविष्य की तो तुम्हें चिंता है और इसके भविष्य के बारे में क्या सोचा है कुछ ? ये कहाँ जाएगी, कहाँ रहेगी, क्या खाएगी ?’’
‘‘………….’’
‘‘मालती, अब जमाना बदल गया है। तुम भी अपनी सोच बदलो। ऐसा कुछ भी नहीं होगा, जैसा कि तुम सोच कर डर रही हो। रीना भी हमारे उन दोनों बच्चों की तरह ही है, बस उसके शारीरिक बनावट में थोड़ी-सी विभिन्नता आ गई है। इसमें उसकी कोई गलती नहीं है, फिर बेवजह उसकी सजा वह क्यों भुगते ?’’ जयंत ने कहा।
‘‘तो…. ? अब हम क्या कर सकते हैं ?’’ मालती जयंत की बातें सुनकर असमंजस में पड़ गई थी।
‘‘देखो मालती, अभी यह बहुत ही छोटी है। इसका इलाज करवाकर हम इसे सामान्य ज़िंदगी जीने लायक बना सकते हैं। इसे हम खूब पढ़ा-लिखाकर आगे बढ़ाएँगे। तुम देखना, एक दिन ये भी बहुत आगे तक जाएगी और हमारा नाम रोशन करेगी।’’ जयंत ने उसे प्यार से समझाया।
‘‘सच… क्या ऐसा हो सकता है ?’’ मालती ने पूछा।
‘‘एकदम सच मालती, रीना के प्रति अब हमारी जिम्मेदारी और भी बढ़ गई है। आज यदि हम उसका सपोर्ट नहीं करेंगे, तो यह भी बहुसंख्यक हिंजड़ों, जिन्हें ट्रांसजेण्डर भी कहते हैं, की तरह मजबूरी में भीख माँगकर, यौनकर्मी बनकर या गा-बजाकर नरक-सा जिंदगी बिताएगी, या फिर कहीं जाकर आत्महत्या कर लेगी, जो न तो वह चाहेगी, न ही हम।’’ कहते-कहते जयंत बहुत ही भावुक हो गया था।
‘‘………’’
कुछ देर रुककर जयंत फिर से बोला, ‘‘मालती, सामान्यतः हम लोग स्त्री और पुरुष, दो ही लिंग को सामान्य मनुष्य मानते हुए तृतीय लिंग अर्थात् थर्ड जेंडर को बहुत ही हिकारत की दृष्टि से देखते हैं, जबकि ये भी हमारे-तुम्हारे जैसे ही सामान्य मानव हैं। कभी स्त्री तो कभी पुरुष की पहचान में फँसे ट्रांसजेंडर की अपनी स्वतंत्र पहचान तो प्रारंभ से ही रही है लेकिन अब वे समाज की मुख्यधारा में जुड़कर नया इतिहास रचने जा रहे हैं।’’
‘‘क्या ? नया इतिहास ?’’ मालती ने आश्चर्य से पूछा।
‘‘हाँ मालती। अप्रैल 2014 में सुप्रीम कोर्ट आॅफ इंडिया ने एक ऐतिहासिक फैसले में ट्रांसजेण्डर्स को थर्ड जेंडर के रूप में कानूनी मान्यता दे दी है। इससे हमारे देश के तकरीबन बीस लाख ट्रांसजेंडर्स को एक नई पहचान मिली है। वैसे भी वैदिक काल से लेकर आज तक का इतिहास साक्षी है कि जब भी अवसर मिला, तृतीय लिंग के लोगों ने अनेक असाधारण कार्य कर अपनी उपयोगिता साबित की है। हिंदू धर्म में तो हम लोग अर्धनारीश्वर की पूजा भी करते हैं। महाभारत काल के महारथी शिखंडी हों, या आधुनिक काल के शबनम मौसी (मध्यप्रदेश राज्य के सोहागपुर क्षेत्र के पूर्व विधायक) मधुबाई प्रधान (छत्तीसगढ़ राज्य के रायगढ़ के महापौर) जोयता मण्डल और स्वाति बरुआ (दोनों जज) ने ऐसे-ऐसे कार्य किए, जो एक साधारण मनुष्य के लिए भी मुश्किल थे। मालती तुम्हें जानकर आश्चर्य होगा कि सन् 2018 में मिस स्पेन एक ट्रांसजेंडर एंजेला पोंस बनी है। केरल के कोंच्चि शहर में ट्रांसजेंडर स्टुडेंट्स के लिए सहज इंटरनेशनल बोर्डिंग स्कूल के नाम से एक स्कूल संचालित है, जहाँ के सभी टीचर्स ट्रांसजेंडर हैं। आज हमारे देश में कई तृतीय लिंग के लोग अध्यापक, प्राध्यापक, जज ही नहीं रेलवे और पुलिस विभाग में भी अपनी सेवाएँ दे रहे हैं। मालती हमें अपने बच्चों और हमारी परवरिश पर विश्वास करनी होगी। क्या पता आगे चलकर हमारी रीना भी एक ऐसी ही मिशाल बन जाए।’’ जयंत ने कहा।
‘‘पर लोगों को हम क्या जवाब देंगे ?’’ मालती ने पूछा।
‘‘कौन लोग मालती ? लोगों का तो काम ही है कहना। हमें लोगों को जवाब देने की क्या जरूरत है मालती ? क्या लोग हमें या हमारे बच्चों को पालेंगे ? हम लोगों की परवाह कर अपने पैदा किए हुए बच्चे का त्याग क्यों करें ? हम अपने बच्चे की समुचित इलाज करवाकर, उसको खूब पढ़ा-लिखाकर आत्मनिर्भर बनाएँगे। क्या ये करारा जवाब नहीं होगा ?’’ जयंत ने प्यार से अपनी पत्नी का हाथ पकड़कर समझाया।
‘‘तो अब क्या करें हम ? क्या इसका कुछ इलाज भी होता है ?’’ मालती ने पूछा।
‘‘करना क्या है, मैं कल ही कुछ पैसों की व्यवस्था कर लूँगा फिर कुछ दिनों की छुट्टी लेकर शहर में रीना का उपचार करा लेंगे। मैंने कहीं पढ़ा है कि कम उम्र में ही थर्ड जेंडर की पहचान हो जाने पर डॉक्टर एक मामूली-सी सर्जरी करके ठीक कर सकते हैं, जिससे ये सामान्य जीवन बिता सकते हैं।’’
‘‘ये तो बहुत ही अच्छी बात बताई आपने। कुछ पैसे मैंने भी बचाकर रखे हैं जी, ताकि आड़े वक्त काम आए। आप उन्हें भी रख् लीजिए। जितना बेहतर उपचार हो सके, हम अपनी बेटी की कराएँगे।’’ मालती बोली।
‘‘ठीक है मालती, लेकिन हाँ, तुम उसे ये कभी एहसास होने नहीं देना कि वह हम सबसे अलग है। ध्यान रहे हिंजड़ापन शरीर से नहीं मन से होता है।’’ जयंत ने कहा।
‘‘जी, बिलकुल सही कह रहे हैं आप। अज्ञानतावश कितनी बुरी-बुरी बातें सोच बैठी थी मैं। आपने तो मेरी आँखें ही खोल दी है।’’ कहते हुए मालती ने अपने पति को बाहों में भर ली।
अगली सुबह उनके जीवन में रोशनी की नई किरण लेकर आई।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़