लघुकथा

लघुकथा – मुंह पर थप्पड़

मानसी और जयन्त बचपन से साथ-साथ पढ़े थे।  एमबीए की पढ़ाई के बाद मानसी ने जाॅब करली थी, उधर जयन्त ब्रेक लेकर सिविल सर्विस की तैयारी कर रहा था। दोंनों की दोस्ती जब प्यार में बदली, तो  परिवार वालों की सहमति से दोनों की शादी तय कर दी गई।  उनकी शादी को सिर्फ एक हफ्ता ही बचा था कि यूपीएससी का रिजल्ट निकला और जयन्त की काफी अच्छी रैन्क आने के कारण उसका आईएएस प्रौपर में चयन हो गया था। दोनों परिवारों में खुशी का माहौल था कि एक दिन जयन्त के चाचा जी घर आये और शादी की खातिरदारी से लेकर दहेज की एक लम्बी लिस्ट थमाकर यह कहकर चले गये कि अब तो आपकी बेटी की शादी एक आईएएस से होने जा रही है तो आपको उस स्टैंडर्ड को ध्यान में रखकर शादी करनी होगी, वगैरह वगैरह।
मानसी को जब यह पता चला तो उसने  जयंत को फोन किया। पहले तो जयंत ने  मानसी का फोन अटैंड नहीं किया,और जब फोन उठाया तो सीधे जवाब देने की बजाय टालमटोली करता रहा,और जब मानसी ने सीधे सीधे सवाल किया कि,”जयंत तुम यह बताओ कि वह तुम्हारे जो चाचाजी दहेज की सूची दे गए हैं,तो वह क्या तुम्हारी जानकारी में है?”
 “हां! है तो ।”
“क्या,तुम उससे सहमत नहीं ?”
“नहीं।”
“मतलब असहमत हो?’
“नहीं, मैंने ऐसा तो नहीं कहा।”
“मतलब यह ,कि वह सूची मेरे पापा व चाचा ने बनाई है, तो सहमत न होते हुए भी मुझे मानना पड़ेगा।—-और फिर इसमें बुराई भी क्या है,आख़िर तुम्हारी शादी आय.ए.एस.जो हो रही है। तुम्हारे जीवन के शान व सुख-सुविधा से गुज़रने की गारंटी भी तो है।”
“मतलब,यह तुम लोगों का अंतिम फैसला है ?”
“हां! ऐसा ही समझो।’
“और हमारे प्यार का क्या ?”
“वह तो हमने तब किया था,जब मैं आय.ए.एस. नहीं था। ”
” ओके! तो मैं इस रिश्ते को अभी ख़त्म करती हूं। मुझे नहीं करना दहेज के लालचियों के घर अपना रिश्ता।”
     और फुंफकारती हुई मानसी चली गई,और जुट गई जी-जान से यू.पी.एस.सी.की तैयारी करने में।
— प्रो (डा) शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल[email protected]