लाईक और कॉमेंट्स
रात के लगभग साढ़े ग्यारह बजे रामलाल जी का हृदय गति रुकने से देहांत हो गया। उनका बड़ा बेटा शंकरलाल गांव से सैकड़ों मील दूर एक शहर में अफसर था। छोटे बेटे भोलाराम ने तुरंत पिताजी की मृत्यु की सूचना मोबाइल के जरिए दे दी।
पिताजी की मृत्यु की सूचना पाकर बड़ा बेटा शंकरलाल दाह संस्कार में शामिल होने के लिए तुरंत सरकारी गाड़ी से रवाना हो गया।
लाख कोशिशों के बावजूद शंकरलाल दोपहर एक बजे के पहले गांव नहीं पहुंच सकता था। परंपरा के मुताबिक रात को दाह संस्कार नहीं किया जा सकता, साथ ही किसी भी घर में लाश पड़े रहने पर न तो चूल्हा जला सकते हैं, न ही खाना खा सकते हैं।
समस्या गंभीर थी। उस पर भोलाराम ने स्पष्ट कह दिया था कि जब तक भैया नहीं आएंगे, डेड बाडी नहीं उठाया जाएगा। बड़े भाई होने के नाते मुखाग्नि देने का पहला हक शंकरलाल का ही था और वे यहां पहुंचने के लिए रवाना भी हो चुके थे।
भूखे-प्यासे गांव वाले शंकरलाल के पहुंचने की राह देख रहे थे। सब यह मानकर चल रहे थे कि डेढ़ बजे तक वे यहां पहुंचेंगे, एक आध घंटा रोना-धोना चलेगा। दो-ढाई बजे से शवयात्रा निकाली जाएगी और तब घरों में चूल्हा जलेगा।
आशा के अनुरूप शंकरलाल एक बजे ही पहुंच गया। पर ये क्या ? रोना-धोना तो दूर, चेहरे पर शिकन तक नहीं। उसने अपने लेटेस्ट स्मार्टफोन से डेड बाडी की आठ-दस फोटो लिए और अपने छोटे भाई भोलाराम से कहा, “यदि पूरी तैयारी हो चुकी है तो जल्दी से शवयात्रा निकाली जाए।”
फिर उसने अपने भतीजे को बुला कर कहा, “बेटा, अभी जब शवयात्रा निकाली जाएगी, तब तुम हर एंगल से अच्छे से कुछ फोटो ले लेना। स्पेशली जब मैं पापाजी को मुखाग्नि दूंगा, तब की। और हां, मोबाइल ज़रा संभल के चलाना। बहुत महंगा है।”
डेढ़ बजे से कुछ पहले ही परंपरा के अनुसार शवयात्रा निकाली गई। गांव वालों ने भी राहत की सांस ली।
मुखाग्नि देने के बाद तुरंत ही शंकरलाल ने भतीजे से अपनी मोबाइल ले खींचे गए फोटो देखने लगा। भतीजे की फोटोग्राफी देख कर वह बहुत संतुष्ट लग रहा था।
अब लोग अलग-अलग समूहों में चिता शांत होने की प्रतीक्षा कर रहे थे। कोई समूह व्यापार, तो कोई राजनीतिक चर्चा में मगन था, तो कुछ लोग अपने-अपने मोबाइल में गेम खेल रहे थे या फिर चैटिंग कर रहे थे।
उधर पिता की चिता जल थी, इधर शंकरलाल फेसबुक में फोटो एडिट कर पोस्ट करने में बिजी था।
चिंता बूझते तक शंकरलाल संतुष्ट हो गया था क्योंकि घंटे भर में ही नौ सौ लाईक और पांच सौ कामेंट्स आ चुके थे। श्मशान घाट से लौटते समय वह साथ चल रहे लोगों को बड़े गर्व से बता रहा था कि अब तक एक हजार लाईक मिल चुके हैं।
— डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा