/ खुल जाएँ दरवाजे सभी /
कठिन होता है समझना
इस दुनिया को, हर जीव को,
कभी असली से ज्यादा नकली
बेहद अपनी दर्जा दिखाती है
कपोल – कल्पित कई बातें
मीठी – मीठी लगती हैं जग में
अनुभव के बल पर होता है
असलीयत का अहसास हमें,
मौन मन की एक परिणति है
अंतिम फैसला तो नहीं है वहाँ
अपने आप में एक सरल रेखा है
कई युद्ध हुए, जीत हो हार,
शांति भंग हुई, पश्चात्ताप में
अकुशल मन का विकार लगा,
अहं की छाया के बाहर सुलह हुई,
अशोक, कनिष्क की युद्ध युयुत्सा
बुझ गयी बुद्ध की अमृत वाणी से
खाने से बढ़कर है खिलाने की तृप्ति
विशाल परिवार का सदस्य बनना
संभव नहीं हो पाता सीख के बगैर,
मन की विकृति से बचना,
मन को समतल पर लाना
आसान नहीं होता साधना के बगैर,
कथनी और करनी को एक करना
कठिन होता है आदर्श पथ रचना
फल खाने की रूचि नहीं होती
सबको एक जैसी अनुभूति
मतिमंद है वर्ण, वर्ग, लिंग, प्रांत,भाषा,
जाति, धर्म जैसी विभेदों की रचना करना,
अनस्तित्व है वहाँ लोक कल्याण
दो शरीरों को एक ही पैर में चलाना,
लौकिक तंत्र ही श्रेष्ठ है दुनिया में
सबको समान अधिकार संभव है
स्वेच्छा तंत्र में खुलता है मन
मत बंद करो आविष्कारों दरवाजा ।