ग़ज़ल
फैले दूर तक उदासी के मौसम नहीं होते
अगर तुम पास होते ज़िंदगी में गम नहीं होते
दिल मिलने की बातें है, राह मिलने से क्या होगा
जहां में साथ चलने वाले सब हमदम नहीं होते
सूनी-सूनी लगती है भीड़ कितनी भी हो चाहे
कभी यारों की महफिल में अगरचे हम नहीं होते
खरीदा जा अगर सकता वक्त पैसे से थोड़ा भी
रईसों के घरों में फिर कभी मातम नहीं होते
और बढ़ते ही जाएँगे लुटाओ जितना चाहे तुम
खुशियों के खज़ाने बाँटने से कम नहीं होते
— भरत मल्होत्रा