आई लव यू “माँ -पापा”
बला की खूबसूरत थी सुगंधा। मासूमियत ऐसी थी कि किसी को भी दीवाना बना दे। आजकल रेशमा आंटी के बेटे रेहांश का उसे देखने का अंदाज़ बिलकुल बदल चुका था। खुद वो भी तो स्टाइलिश और स्मार्ट रेहांश की तरफ खिंचीं चली जा रही थी। पापा की लाडली सुगंधा को लगता था कि उसके पापा इस रिश्ते को मना नहीं करेंगे, पर… कुछ दिनों से वह महसूस कर रही थी कि जब भी रेहांश घर में आता था, सुगंधा के पापा साए की तरह उसके साथ ही रहते थे।
इससे पहले कि सुगंधा हिम्मत करके मम्मी पापा को दिल की बात बताती, घर में उसके और सुधीर से उसके रिश्ते की बात चलने लगी। रेशमा आंटी और रेहांश का घर आना बंद हो चुका था। पता चला कि पापा ने रेहांश को धमकी दी थी कि अगर वो सुगंधा के आसपास भी फटका तो उसे उसका अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहना होगा। हालांकि रेशमा आंटी और रेहांश इतना होने के बावजूद, उसे अपनाने को तैयार थे, पर सुगंधा सपने में भी उनका बुरा नहीं चाहती थी। इसलिए चुपचाप पापा की मर्जी अनुसार जिंदगी में आगे बढ़ने को तैयार हो गई।
सुधीर उसके पापा के सहकर्मी का बेटा था। संपन्न परिवार का सुधीर देखने में तो स्मार्ट था ही, उसकी सबसे बड़ी खूबी उसकी सरकारी नौकरी और उसका अपनी जाति का होना था। सुधीर को सुगंधा पहली ही नज़र में भा गई थी, इसलिए लगभग एक माह में ही सुगंधा की शादी हो गई और वह अपने ससुराल आ गई ।
चाहे सुगंधा ने अपने मन में सारी यादें दफना दीं थीं और अपनी गृहस्थी में रम गई पर, पापा की लाडली के मन में उनके लिए थोड़ी खटास आ चुकी थी।
सुलझा, समझदार और दिलो जान से चाहने वाला पति.. सब कुछ तो मिल गया था सुगंधा को, पर फिर भी, कुछ यादें जोकि उसने ज़ेहन में बड़े करीने से दफ़ना के रखीं थीं, यदा कदा दिल के दरवाज़े पर दस्तक दे ही दिया करतीं थीं ।
इस बार अपनी मम्मी की बीमारी की ख़बर सुन सुगंधा जब अपने मायके आई हुई थी। मम्मी पापा के कमरे से आने वाली आवाजों में अपना नाम सुन, न चाहते हुए भी उसके कदम उनके कमरे की तरफ बढ़ चले। दरवाज़ा खुला ही था।
“सुनो जी! समझ नहीं आता कि आपने सुगंधा को असलियत बता क्यों नहीं दी । सुगंधा आज तक हम दोनों को अपना गुनहगार मानती है। ” सुगंधा की माँ की आवाज़ थी।
“तुम्हें क्या लगता है कि हमारे कहने मात्र से वो समझ जाती? जब तुम्हारी सहेली और उसके बेटे के फैलाए मक्कड़जाल में हम फंस गए, वो तो बेचारी नादान थी।” पापा जी के स्वर में निराशा थी, “कोई बात नहीं अगर वो मुझसे नाराज़ है, पर कम से कम वो अपने घर में खुश तो है।”
“जाति धर्म भूल, मैं सुगंधा की शादी रेहांश से करने को तैयार था, वो तो अच्छा था कि समय रहते हमें रेहांश के शादीशुदा होने का पता चल गया, वरना तुम्हारी सहेली ने तो न जाने हमें फांसने का कब से जाल फैला रखा था।” बीती बातों को याद करते हुए पापा की आंखों में खौफ और गुस्सा दोनों उतार आया था।
“ओह!” बीती बातें प्याज़ के छिलकों की तरह उघड़ने लगीं थीं कि कैसे रेहांश और आंटी उसे अपनापन दिखा उसे पापा के विरुद्ध कर रहे थे। और तो और उन्होंने उसे भाग कर शादी करने का भी सुझाव दे दिया था। वो तो अच्छा था कि वो अपने मम्मी पापा से बेहद प्यार करती थी, इसलिए उनसे नाराज़ होने के बावजूद वह उनके खिलाफ़ न गई, वरना… अपना अंजाम सोच ही सुगंधा लड़खड़ा गई और संभलने के लिए उसने दरवाज़े की चौखट को पकड़ लिया।
यकायक दरवाज़े पर हुई आवाज़ पर सुगंधा की माँ चौंक सी गई और उसे परेशान सा खड़ा देख आवाज़ को संयत करते हुए बोलीं, “कुछ चाहिए था बेटा?”
“हां! आप दोनों से माफ़ी। आई लव यू पापा, आई लव यू माँ।” कहते हुए सुगंधा दोनों से लिपट गई।
आंखों से बहते आंसू अपने संग गिले शिकवे भी बहा ले जा चुके थे।
अंजु गुप्ता अक्षरा