बनदशें इस ज़माने की भाती नही हमें
ख़ुश नही हैं हम यहाँ हमारे इरादे और हैं
क़ायल तो ज़रूर हैं हम दुनिया के असूलों के
मगर चाहतें हमारे दिल की कुछ और हैं
मजबूर करते नही हम किसी को हमारी राह पर चलने के लिये
मगर चलना है अगर हमारे साथ तो शरतें हमारी और हैं
दरद भी हमारे दिल का हम दिखाते नही किसी को
कियू कि अदाएं ही हमारी मुहबबत की कुछ और हैं
काट कर पंख बंद रखना परिंदों को पनजरों में
अैसी तो कोई हसरत ही नही थी कभी भी हमारे दिल में
बन जाना शाहीन और उड जाना उूंची फ़ज़ाओं में
मनज़ूर तो है हम को मगर उडानें हमारी फ़ज़ाओं की और हैं
माना की मनज़ल अपनी पर पुहंच ही नही पाए मुताबिक़ आप के
मगर वक़ार जो हम ने पाए हैं ज़िनदगी में वोह तो कोई और हैं
कराहटें दरद के अहसास की उठती हैं जो हमारे पैहलू में
ग़म हम ने जितने उठाए हैं ज़िनदगी में वोह कैई और हैं
नज़र अनदाज़ कर रहे हैं जो आज हमारे वजूद को –मदन–
तलाश कल वोह ही करें गे हमारी अनदाज़ हमारे जो और हैं
तबसरे आज जो कर रहे हैं हमारी हर लिखी तैहरीर पर
शिकवे कल वोह ही करें गे दौर इस ज़िनदगी के और हैं