कविता

छोटा-सा तिनका

तिनका-तिनका जोड़कर, चिड़िया बनाती है घोंसला,
कभी टिका रहता है, कभी हवा के झोंके से गिर जाता है घोंसला. (1)

धैर्य धारण कर चिड़िया, जोड़े नया इक नीड़,
साहस-दाता प्रभु का आभार माने, धन्य है उसकी पीड़. (2)

तिनके को कमतर मत समझो, दृग में जो पड़ जाए,
है तो एक छोटा-सा तिनका, आँख घायल कर जाए. (3)

तिनके की ओट ले माता सीता ने, ललकारा रावण को,
लाज का पर्दा बन गया तिनका, लाज तब भी न आई रावण को. (4)

तृण को चीर कर कृष्ण ने, भीम को संकेत दिया था,
भीम ने दो टुकड़ों में तभी, जरासंघ की देह को बाँट दिया था. (5)

घास-फूस-तिनकों को जोड़ कर, भिलनी ने जोड़ी कुटिया,
जूठे बेर राम ने खाए, स्वीकारी जल-लुटिया. (6)

‘डूबते को तिनके का सहारा’, तिनके का आभार मानना’
‘तिनके को पहाड़ कर दिखाना’, तिनके पर मुहावरे जानना. (7)

‘तिनके की चटाई नौ बीघा फैलाई’, एक भी प्रतिज्ञा पूरी न हो पाई,
प्रतिज्ञा से पहले जो सोचा होता, होती नहीं यों जग-हँसाई! (8)

भोजन में तिनका पड़े, देखे न कोई खा पाय,
घास-फूस की रोटी खा, राणा ने दी आन बचाय. (9)

नजर न लग जाए बाल को, माता तिनका तोड़े,
छोटे-से तिनके में अद्भुत शक्ति, किसे तोड़े, किसे जोड़े! (10)

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244