दुआओं का दान
एक कार दुर्घटना में नवीन के पिताजी का बहुत-सा रक्त बह जाने और अस्पताल में उनके ग्रुप का रक्त मौजूद न होने के कारण रक्त लेने वाला ही नहीं रहा था. नवीन के ऑफिस से पहुंचने से पहले ही वे इस दुनिया को अलविदा कह चुके थे.
नवीन को खुद भी लग रहा था, कि काश! उन्हें समय पर रक्त मिल जाता, तो आज यह दिन नहीं देखना पड़ता.
अब वह खुद भी रक्तदान करता, साल में दो बार रक्तदान का कैंप लगवाता और रक्तदान के लिए ऑनलाइन-ऑफलाइन हर संभव प्रयास करता.
उसे रक्तदान के साथ दुआओं का दान भी मिल रहा था.