लघुकथा

निर्लेपता!

तीजे की बैठक चल रही थी.
“मौसी हमेशा के लिए भगवान के घर चली गई हैं, अब कभी वापिस नहीं आ पाएंगी.” तीन दिन से घर के मायूसी माहौल में छः साल का छोटू इतना ही जान पाया था.
आज जो लोग बैठक में आ रहे थे, शीश नवाकर मौसी की तस्वीर पर पुष्प समर्पित कर रहे थे.
छोटू ने अपने लिए इसमें भी हर्ष के पल ढूंढ लिए थे.
वह भागकर जाता, शीश नवाकर मौसी की तस्वीर पर पुष्प समर्पित करता और भागकर वापिस आकर मां की गोद में बैठ जाता.
मां उस समय डांट तो नहीं ही सकती थी, इशारे से मना करती, पर वह बार-बार ऐसा ही कर रहा था.
गीता नहीं पढ़ी थी छोटू ने, पर गीता के निर्लेपता की साकार प्रतिमा था छोटू!

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244