निर्लेपता!
तीजे की बैठक चल रही थी.
“मौसी हमेशा के लिए भगवान के घर चली गई हैं, अब कभी वापिस नहीं आ पाएंगी.” तीन दिन से घर के मायूसी माहौल में छः साल का छोटू इतना ही जान पाया था.
आज जो लोग बैठक में आ रहे थे, शीश नवाकर मौसी की तस्वीर पर पुष्प समर्पित कर रहे थे.
छोटू ने अपने लिए इसमें भी हर्ष के पल ढूंढ लिए थे.
वह भागकर जाता, शीश नवाकर मौसी की तस्वीर पर पुष्प समर्पित करता और भागकर वापिस आकर मां की गोद में बैठ जाता.
मां उस समय डांट तो नहीं ही सकती थी, इशारे से मना करती, पर वह बार-बार ऐसा ही कर रहा था.
गीता नहीं पढ़ी थी छोटू ने, पर गीता के निर्लेपता की साकार प्रतिमा था छोटू!