योगदान
पूरे देश में “क्षय मुक्ति अभियान” चल रहा था. सभी लोग अपनी-अपनी प्रतिभा के अनुसार कार्यक्रम प्रस्तुत कर जागरूकता का प्रचार-प्रसार कर रहे थे. आर्थिक सहयोग देने की प्रक्रिया भी जारी थी. छोटी-सी अनामिका अपनी छोटी-सी गुल्लक ले आई और माता-पिता से उसमें जमा चंद सिक्के “क्षय मुक्ति अभियान” के लिए भेजने का आग्रह करने लगी.
“इतनी-सी राशि के आर्थिक सहयोग से भला क्या लाभ होगा?” पिता की जिज्ञासा थी और अनामिका के विचार जानने की विधि भी.
“आज हमारी मैम ने एक कहानी सुनाई थी. जब भगवान राम सेतुबंध कर रहे थे, तो एक छोटी-सी गिलहरी बार-बार अपनी पूंछ में मिट्टी लपेटकर आती और सागर में डाल देती. भगवान राम देखकर हैरान हुए और पूछा- “ये क्या कर रही हो गिलहरी रानी!”
“मैं सेतुबंध के लिए सहयोग कर रही हूं.” गिलहरी ने विनम्रता से जवाब दिया.
“इतनी-सी मिट्टी से सेतुबंध के लिए भला क्या सहयोग होगा?”
“मुझे पक्का विश्वास है कि यह सेतु बनकर ही रहेगा, तब मेरे मन में संतोष रहेगा, कि इसमें मेरा भी छोटा-सा योगदान है.”
बिटिया का सराहनीय व अनुकरणीय मंतव्य समझकर पिता ने अपनी तरफ से और परिवार की तरफ से भी बहुत-सी धनराशि का योगदान किया और जागरूकता अभियान का हिस्सा भी बने.