कविता

वह मुर्दा है

दहले हुए दिल से,
क्या लिखें और कैसे लिखें!
लेखनी भी निःशब्द होकर सोच रही है,
क्या लिखें और कैसे लिखें!
सारी हदें पार कर दी हैं,
स्वार्थपरकता और दरिंदगी ने,
न्याय को भी सोचने को विवश कर दिया है
खुदगर्ज़ मानव की शर्मिंदगी ने.
प्रेमी का रूप धारकर प्रेमिका को,
चाकुओं से कुरेदा,
बोटी-बोटी काटकर रौंदा,
कुकर में उबाला, मिक्सी में पीसा.
पीसा!
ऐसे दुष्कृत्य को देख,
पीसा की मीनार भी शर्मिंदा है,
आदमी है कि दरिंदा है!
जन्म से ही मुझे झुकते हुए देखकर भी,
उसने झुकना नहीं सीखा,
कमाल यह कि अब भी वह जिंदा है!
जिसने झुकना नहीं सीखा,
वह इंसान नहीं, ठूठ है या मुर्दा है,
खुद को वह जिंदा समझता होगा,
जमाने की समझ से तो वह मुर्दा है.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244