कविता

राहुल का खुला पत्र : पिता के नाम

कोटि नमन हे पूज्य पिताश्री,
पुत्र राहुल मैं पूछ रहा,
धर्मपत्नी-नवजात पुत्र को,
त्याग गमन किया कहो कहां?
खुला पत्र मैं लिख रहा जिससे,
शीघ्र ही वायरल हो जाए,
दुनिया के साथ ही शायद,
आप तक भी ये पहुंच पाए.
मैंने सुना है पिता पुत्र की
छत्रछाया है पालक है,
फिर क्या कारण कहो पिता से,
रहा दूर यह बालक है.
सबसे पहले पिता गोद ले,
बड़े प्यार से दुलारता है,
उसकी अपनी माता से,
जग से पहचान कराता है.
आपने ऐसा किया या नहीं,
उसका मुझे कोई गम नहीं,
लेकिन मेरी माता का दुःख,
इससे भी कोई कम नहीं!
बिना बताए आप रात्रि में,
हम दोनों को त्याग गए,
क्या इतना भी सोचा आपने,
दिए उन्हें कितने कष्ट नए!
क्या माता को बोल के जाते,
राह का रोड़ा बन जाती!
भारत की गौरवमई नारी,
उसमें गौरव ही पाती.
आप गए थे बोध-प्राप्ति को,
गृहस्थी में भी यह संभव था,
ऐसे बहुत प्रसंग हुए हैं,
आपके लिए यह मुश्किल था?
ख़ैर हुआ जो उसको भूलें,
आखिर पिता-पुत्र ही तो हैं,
हमें गर्व है खुद पर पिताश्री,
माता यशोधरा के पुत्र हैं,
गौतम बुद्ध के पुत्र हैं,
हम आपके ही पुत्र हैं.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244