मुक्तक/दोहा

वधू

कोई बेटी वधू बनके जब आती है
ख्वाब ढेरों सजाके वो घर लाती है
बिन कहे कोई समझे उसे भी वहां
अपने मुख से कभी जो न कह पाती है।

चुप सी रहती वो मैया की चिड़िया वहां
रूठी रहती वो बाबुल की गुड़िया वहां
जो शरारत किये बिन न रहती कभी
खोई रहती वो भैया की चुहिया वहां।

दर्द दिल का किसी से न कह पाती है
बाण शब्दों के तीखे न सह पाती है
घर पराया पिता का चली छोड़कर
खुश परायों के घर में न रह पाती है।

जान जाती वो सपने स्वयं तोड़ना
बिखरे रिश्तों की माला पुनः जोड़ना
भूल जाती वो शिकवे गिले भी सभी
सीख लेती है किस्मत पे सब छोड़ना।

उसको सम्मान का व्यवहार मिले
अपने माता पिता का वो प्यार मिले
सुख से सम्पूर्ण घर बार हो जाएगा
बिटिया जैसा बहू को दुलार मिले।

नीतू शर्मा 'मधुजा'

नाम-नीतू शर्मा पिता-श्यामसुन्दर शर्मा जन्म दिनांक- 02-07-1992 शिक्षा-एम ए संस्कृत, बी एड. स्थान-जैतारण (पाली) राजस्थान संपर्क- [email protected]