उर्वशी की मी टू
“राजेश जी आप चांदनी चौक तरफ ही रहते हैं न ?” ऑफिस से निकलते ही डायरेक्टर साहब की स्टेनो उर्वशी जी ने पूछा.
“जी हाँ, वहीं मोड़ पर पहली गली में तीसरा मकान है हमारा.” ऑफिस में हाल ही नियुक्त क्लर्क राजेश ने बताया.
“हाँ, मुझे पता है. मैंने आपको उधर आते-जाते कई बार देखा है. मेरा घर भी चांदनी चौक के पास ही है.” उर्वशी ने बताया.
“अच्छा-अच्छा, फिर तो हम दोनों पड़ोसी निकले.” राजेश के मुँह से यूं ही निकल गया. आसपास खड़े सहकर्मी मुस्कुराने लगे.
“क्या आज आप मुझे अपनी बाइक पर लिफ्ट देंगे ? क्या है कि आज मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है.” उर्वशी ने आग्रह किया.
“हाँ-हाँ, क्यों नहीं. आइए बैठिए.” राजेश ने कहा और दोनों चल पड़े.
अब तो दोनों के बीच अक्सर इस प्रकार की हल्की-फुल्की बातचीत होती रहती. प्रायः दोनों साथ ही आते-जाते. उर्वशी तलाकशुदा थी, जबकि राजेश अभी अविवाहित था. दोनों को एक दूसरे का साथ खूब रास आ रहा था.
उर्वशी अक्सर राजेश से सौ-दो सौ रुपये मांगती रहती थी, जिसे राजेश दोस्ती के नाते दे देता था, पर वह कभी लौटाती नहीं थी.
एक दिन उर्वशी ने राजेश से जरूरी काम के बहाने अचानक बीस हजार रुपये माँगे. राजेश ने साफ़ मना कर दिया. उर्वशी अड़ गई कि “मुझे पता है तुम्हें कल ही सेलरी मिली है और तुम्हारे पास पैसों की कमी नहीं है. यदि तुमने मुझे आज शाम तक बीस हजार रुपये नहीं दिए, तो मैं कल ही बॉस से तुम्हारी शिकायत कर दूँगी कि लिफ्ट के बहाने तुम मेरा यौन उत्पीडन करते हो. बाकि ऑफिस में गवाहों की कमी तो है नहीं, जो हमें आते-जाते अक्सर देखते हैं. ‘मी टू’ केम्पेन का नाम तो सूना ही होगा. नौकरी तो जाएगी ही, तुम कहीं भी मुँह दिखाने के काबिल नहीं रहोगे.”
अब राजेश को याद आया कि उर्वशी क्यूँ स्टाफ के लोगों के सामने अकसर उससे चिपक कर बाइक में बैठती थी.
नौकरी जाने और बदनामी के डर से उसे मन मारकर उर्वशी को बीस हजार रुपये देने पड़े और अब तो बस सिलसिला ही शुरू हो गया. राजेश की लगभग आधी कमाई ‘मी टू’ में खर्च होने लगी और आधा समय किसी दूसरे शहर में अच्छी नौकरी की तलाश में बीतने लगा.
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा