लघुकथा

काल का पंजा

हमारी पड़ोसिन नहाकर कमरे में आई. टांगों में तकलीफ होने के कारण वह कमरे में पलंग पर बैठकर ही कपड़े पहन पाती थी. पलंग पर बैठने से पहले ही धम की आवाज हुई, बेटी-बहू दौड़ी आईं, तब तक पंछी पिंजरे से जा चुका था.
यह सुनकर मुझे 25 साल पहले की एक घटना याद आई. मैं पार्क में सैर कर रही थी. एक बिल्ली एक छोटी-सी गिलहरी के पीछे पड़ी हुई थी. बिल्ली से बचने के लिए गिलहरी ने रस्ते के दूसरी ओर जाने के लिए तेजी से दौड़ लगाई. बीच रस्ते में ही थी, कि एक कौआ उसे दबोचकर उड़ गया.
काल का पंजा कब, कहां, कैसे दबोच ले, जानना मुश्किल है.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244