दीपावली
धुल गए गर्द के सभी कण, गगन हुए उजियारे,
चमकने लगी थालियाँ सभी, दीप बन गए तारे |
चौदह सन के अंत में रामजी, विजयी हो रावण से,
संग सीता और लक्ष्मण के, वापस आए वन से |
गए दिन बारिश के खुला नभ, महके समस्त उपवन,
नगर- नगर में खुशियाँ बिखरी, प्रफुल्लित हुए चितवन |
अरूण हो गया अदृश्य नभ में, आहिस्ता से निशि आई,
निलय- निलय में दीये उॅंजले, तो साॅंझ जगमगाई |
अजिरा में शोर पटाखों का, राॅकेट छुए अंम्बर,
फूलझड़ियों से निकली दीप्ति, चमक उठा समस्त घर |
दिवा गुनगुने, यामा शीतल, संध्या हुई गुलाबी,
दिवाकर घुल गया उषा में, ऋतु हुई शराबी |
— निहाल सिंह