धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

श्रद्धा धाम – तलवाड़ा का दक्षिण कालिका मन्दिर

राजस्थान के सुदूर दक्षिणाँचल बांसवाड़ा जिले में शैव और वैष्णव उपासना के साथ ही दैवी उपासना आदि काल से अपने पूरे उत्कर्ष से प्रवाहमान रही है। पूरे क्षेत्र में जगह-जगह देवी मन्दिरों और स्थानकों की मौजूदगी जन-जन में दैवी उपासना की गहरी पैठ का संकेत देती है।

नदी-नालों और तालाबों के किनारों से लेकर पर्वत की खोह, गुफाओं और कन्दराओं तक में दैवी के प्राचीन मन्दिर विद्यमान हैं जो सदियों से वनांचल में शक्ति उपासना का उद्घोष कर रहे हैं।

कई दैवी मन्दिर अरावली की पर्वतमाला से गौरवान्वित पहाड़ों के बीच पसरे हुए नैसर्गिक सौन्दर्य के बीच अवस्थित हैं जो श्रद्धा के साथ प्रकृति के सामीप्य का बोध कराते हैं। इन स्थलों पर पहुंचकर हर किसी को जीवन के संत्रासों से मुक्ति का अहसास होकर दिली सुकून प्राप्त होता है।

इन दिव्य दैवीय स्थलों में कुछ क्षण रहकर की गई साधना जीवन में उन्नति के कई-कई द्वार खोलने के लिए काफी है। यही कारण है कि इन एकान्त और निर्जन स्थलों पर प्रकृति की गोद में रहकर प्राचीनकाल में ऋषि-मुनियों और सिद्धों ने तपस्या की। आज भी इन सिद्धों की गाथाएं बहुश्रुत हैं।

राजस्थान, गुजरात और मध्यप्रदेश की लोक संस्कृतियों के संगम एवं समन्वय के केन्द्र रहे बांसवाड़ा जिले में त्रिपुरा सुंदरी मैया, सिद्धि विनायक और भगवान द्वारिकाधीश की पावन नगरी तलवाड़ा में रामकुण्ड मार्ग पर स्थित दक्षिण कालिका मंदिर लोक आस्था का केंद्र है।

एकान्त में अवस्थित इस मन्दिर के गर्भ गृह में अष्टभुजा काली की मनोहारी व ओजस्वी प्रतिमा है। दैवी दक्षिणी हाथों में तलवार, फरसा, धनुष-बाण व त्रिशूल तथा बांयी ओर के हाथों में ढाल, भाला, खप्पर व मूंज धारण किए है। काली की मूर्ति के माथे पर चंद्रमा व गले में मुण्डमाल है जबकि लंबी जिह्वा मुँह से बाहर निकली हुई है। मन्दिर में  भगवान शंकर की लेटी हुई प्रतिमा है, जिनके हाथों में डमरू है।

इस मंदिर पर यों तो वर्ष में कई बार श्रद्धालुओं  का तांता बंधता है मगर नवरात्रि पर ख़ास अनुष्ठान होते हैं। वर्ष की सभी चारों नवरात्रियों में यहां दर्शन तथा पूजा-पाठ और अनुष्ठानों का क्रम बना रहता है। चैत्र माह में रामनवमी के दिन पास के रामकुंड पर जब मेला भरता है तब इस मंदिर पर भी मेलार्थियों का आवागमन लगा रहता है।

काली मन्दिर परिसर में गणपति, पार्वती, हनुमानजी, खोड़ियार माता, अंबाजी, भैरवजी आदि की मूर्तियां हैं। मंदिर परिसर में हवन कुंड है, जहां मन्नतें पूरी होने पर हवन अनुष्ठान होते हैं।

आस-पास वृक्षों की स्थिति ने इस मंदिर को श्रद्धा के साथ-साथ नैसर्गिक सौन्दर्य का धाम भी बना डाला है, जहां आने वाले भक्तों की मनोकामनाएं तो पूर्ण होती ही हैं, दिली सुकून भी मिलता है। विस्तृत परिक्षेत्र में पसरे बरगद तथा अन्य वृक्षों और हरियाली भरे वातावरण की मौजूदगी आनंद का ज्वार उमड़ा देती है।

— डॉ. दीपक आचार्य

*डॉ. दीपक आचार्य

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