पुस्तक समीक्षा मीडिया और मुद्दे : एक व्यापक दृष्टिकोण
हमारे जीवन में मीडिया का व्यापक प्रभाव है। सोशल मीडिया और तकनीकी युग में इसका प्रभाव नित बढ़ ही रहा है।
युवा शिक्षक लेखक नीरज कुमार वर्मा ‘नीरप्रिय’ ने अपने अनुभवों, अध्ययन की जिज्ञासा और समाज के प्रति अपने दायित्व बोध के चलते मीडिया के विविध पक्षों को जन मानस के सामने लाने का साहसिक प्रयास किया है। एक युवा लेखक के नाते मैं उनके हौसले की तारीफ करता हूं। क्योंकि यह ऐसा विषय है जिसकी गहराई में झांक कर देखने और यथार्थ को सामने लाने के बारे में शायद कम ही लोग सोचते होंगे। अधिसंख्य केवल सोचकर ही रह जाते हैं।
संप्रति लेखन और पत्रकारिता में रुचि रखने वाले नीरप्रिय ने अपनी बात को सहजता और साफगोई से छोटे छोटे बिंदुओं को आधार बनाकर 47 भागों में रखने का प्रयास किया है।
माता पिता और बड़े भाई को समर्पित अपनी पुस्तक की भूमिका में वे लिखते हैं कि स्वतंत्रता संग्राम में जहां एक ओर देश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ा, वहीं पर पत्रकारिता जगत में सेवा, सृजन और जागरूकता रुपी मूल्य स्थापित करके आने वाली पीढ़ी के लिए पथप्रदर्शक की भूमिका अदा किया।
आभार में नीरप्रिय ने लिखा है कि किसी भी कार्य की सफलता का श्रेय हम बड़ी आसानी से ले लेते हैं जबकि उसके पीछे बहुतों की प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष भूमिका रहती है।अंत: हमें अपनी व्यक्तिगत सफलता के अहं से बचना चाहिए। एक युवा के तौर पर ऐसी सोच उनकी गंभीरता को दर्शाता है । उन्होंने उन सबके स्नेह, मार्गदर्शन का सम्मान करते हुए उम्मीद की ज्योति को जागृत रखते हुए दो लाइनों में अपने इरादे स्पष्ट कर दिए हैं-
इस पर का उद्देश्य नहीं श्रांत भवन में टिके रहना।
किंतु पहुंचना उस मंजिल तक जिसके आगे राह नहीं।
लेखक ने अपने पहले अध्याय में गांधी जी की पत्रकारिता पर सारगर्भित और व्यापक दृष्टिकोण से प्रकाश डालने के साथ दूसरे अध्याय में गांधी के नजरिए में पत्रकारिता की स्थिति परिस्थिति और उद्देश्य पर अपनी समीचीन लेखनी चलाई है।
डा. अंबेडकर और नेहरू की पत्रकारिता पर भी लेखक ने सारगर्भित सिंहावलोकन किया है। मीडिया और युवा में लेखक का मानना है कि वरिष्ठ संपादकों और पत्रकारों को अपने नजरिए में बदलाव की आवश्यकता आन पड़ी है,तो युवा पीढ़ी को भी सोचने की जरूरत है कि पत्रकारिता के क्षेत्र में शार्टकट से नहीं बल्कि परिश्रम से ही भविष्य तय होगा। मीडिया और गांव में ग्रामीण क्षेत्र के पत्रकारों की समावेश पर समस्याओं पर प्रकाश डालते हुए महसूस किया कि “ऐसे में गांवों को यदि हम मुख्यधारा में लाना चाहते हैं तो हमें अपने पत्रकारिता की धारा और नजरिए में परिवर्तन करना होगा।
मीडिया और कार्टून में कार्टूनिस्टों की समस्याओं को उद्धृत करते हुए लिखा है कि राजनैतिक कार्टून जो स्वभाव से सत्ता विरोधी होता है, इसके लिए कार्टूनिस्टों को कीमत चुकानी पड़ती है उपेक्षाओं, दंडात्मक तना आर्थिक भार की परंपरा को लुप्तप्राय बना दिया है।
मीडिया और पर्यावरण में लेखक ने लिखा है कि एक सर्वे में एक बात सामने आई है कि प्रिंट मीडिया के समाचारों में मात्र ०.५%स्थान ही पर्यावरण संदर्भ को मिलता है जबकि टीवी चैनलों में महज़ ०.४%।कारण मीडिया पर बाजार का हावी होना है। विभिन्न तथ्यों और उपलब्धियों का जिक्र करते हुए उन्होंने लिखा है कि पर्यावरण की रक्षा में पत्रकारिता और लेखक की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। मीडिया और लोकतंत्र में लेखक इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि पत्रकारिता को चौथे स्तम्भ के रूप में मजबूती प्रदान करने के लिए पत्रकारों को निर्भीक, निष्पक्ष, ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ होना पड़ेगा। मीडिया और विज्ञापन में विभिन्न मीडिया प्लेटफॉर्म पर विज्ञापनों के बेतरतीब और औचित्यहीन बाजारी करण पर चिंता भी व्यक्त किया है।
मीडिया का सत्ता से लगाव में सत्ता के साथ मीडिया के बढ़ते लगाव, और समर्पण की व्याख्या करते हुए आइना दिखाने का प्रयास करते हुए लिखा है कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति थामस जेफरसन ने अखबारों के संदर्भ में कहा था – “अखबार में प्रकाशित किसी भी चीज पर यकीन नहीं किया जा सकता है।इस प्रदूषित माध्यम में जाकर सब संदिग्ध हो जाता है।”
इसी प्रकार वर्तमान मीडिया:जन सरोकारिता का अभाव, साहित्य और पत्रकारिता, हिंदी पत्रकारिता के समक्ष चुनौतियां, साहित्य और पत्रकारिता में बढ़ती दूरी
भारतीय पत्रकारों की प्रताड़ना, महिला पत्रकारिता, फिल्म पत्रकारिता, यूट्यूब पत्रकारिता, हिंदी सेवी पत्रकारिता, सोशल मीडिया: विश्वसनीयता का संकट, रिश्तों में सेंध लगाता सोशल मीडिया, फेकन्यूज : एक समस्या,पासवर्डों में फंसती जिंदगी, युवाओं को उग्र बनाता सोशल मीडिया, मोबाइल का भारतीय समाज पर प्रभाव आदि 46 विषयों को अपने लेखन का आधार बनाया है और गहराई में उतर कर अपनी बात रखी है।
सबसे अहम बात यह है कि लेखक ने सबसे अंत में संदर्भ ग्रंथ सूची देकर अपने लेखन की विश्वसनीयता को स्थापित मापदंडों पर खरा उतारने का सुंदर सार्थक प्रयास किया है।
पत्रकारिता और उसमें अपनी जड़ें जमाता जा रहे सोशल मीडिया के परिप्रेक्ष्य में लेखक ने गहराई से लगभग प्रत्येक, विषय/क्षेत्र को अपने लेखन का आधार बनाया है । जिसमें राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय, पारिवारिक, सामाजिक, व्यवहारिक और आम जिंदगी के नजरिए से लेखनी चलाई है।जो पूरी तरह व्यवहारिक और जिम्मेदारी के साथ उन्होंने स्पष्ट शब्दों में उकेरने का प्रयास किया है।
युवा शिक्षक कवि साहित्यकार लेखक ही नहीं एक जिम्मेदार नागरिक के तौर पर उन्होंने बड़ी संजीदगी से ऐसा विषय हाथ में लिया है, जिससे हर क्षेत्र ही नहीं हर किसी का जीवन किसी न किसी रूप में जुड़ा ही नहीं प्रभावित भी हो रहा है। कुछ सकारात्मक तो कुछ नकारात्मक। सिक्के के दोनों पहलुओं को समान भाव से आंकलन करने की उनकी दृष्टि में उनके शिक्षकीय गुण स्पष्ट प्रकट होते हैं।
उनकी योग्यताएं उनके अध्ययनशीलता को बखूबी बयान कर रही है।
पाठकीय दृष्टिकोण से ऐसी पुस्तक सभी छोटे बड़े शिक्षण संस्थानों व राजकीय पुस्तकालयों में होनी ही चाहिए। जिससे हमारी युवा पीढ़ी न केवल ज्ञान प्राप्त कर सकें, बल्कि एक युवा लेखक से कुछ प्रेरणा भी प्राप्त कर सके और आदर्श मान उनके व्यापक दृष्टिकोण को अपने जीवन में उतारने का प्रयास कर कुछ ऐसा कर गुजरने का जज्बा खुद में पैदा कर सके, जिसका लाभ भविष्य में राष्ट्र और समाज को किसी न किसी रूप में मिल सके।
अनुराधा प्रकाशन नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित २१६ पृष्ठ की पुस्तक का मूल्य महज 300/- रखा गया है। जिसे पुस्तक की सामग्री के आधार पर बहुत कम और सबकी पहुंच में माना जा सकता है। पुस्तक की उपादेयता को देखते हुए कवर को सजिल्द बनाया जाता तो पुस्तक का आकर्षण और आयु दोनों बढ़ जाती।
अंत में मैं होनहार नीरप्रिय जी को ऐसे व्यापक विषय को लेकर मन, चिंतन,लेखन, पुस्तक प्रकाशन की असीम बधाइयां शुभकामनाएं देते हुए विश्वास करता हूं कि निकट भविष्य में आपकी लेखनी से समाज और राष्ट्र लाभान्वित होते रहेंगे। साथ ही मीडिया और मुद्दे की सफलता के प्रति पूर्ण आश्वस्त भी हूं।
लेखक और पुस्तक के लिए अशेष शुभकामनाएं।