जो आरम्भ है, अनादि है, सर्वश्रेष्ठ है,
जो काल, कराल, प्रचंड है,
जिनका स्वरूप अद्वितीय है,
जिनका नाम ही सर्वस्व है,
शिव है, सदा शिव है।
मस्तक में जो चाँद सजाये,
भस्म में जो रूप रमाये,
गंगप्रवाह जो जटा मे धराये,
मंथन को जो कण्ठ में बसाये,
शिव है, सदा शिव है।
वृषभ जिनका वाहन है,
ओंकार में जिसका आवाहन है,
विरक्ति जिनकी कृपाण है,
सम्पूर्ण जगत के जो प्राण है,
शिव हैं, सदा शिव हैं।
सती में जिनका सतीत्व है,
ब्रहमांड के हर कण मे जिनका अस्तित्व है,
अपरिमित जिनका प्रभाव है,
प्राणीमात्र मे जिनका प्रादुर्भाव है,
शिव है, सदा शिव है।
सुन्दरता की सीमाओं से भी अपार सुन्दर है जो,
हिम वर्ण से भी गौर वर्ण परमात्मा है जो,
चींटी के कण और हाथी के मण के दाता है जो,
अक्षर, वेद, और शास्त्र के ज्ञाता हैं जो,
शिव हैं, सदा शिव हैं।।
— रेखा घनश्याम गौड़