लघुकथा

रंगीनी के इश्तहार

सेठ हजारीलाल हजारों में नहीं, लाखों में खेलते थे. लाखों वालों का सम्मान तो हर जगह होता ही है! होता असल में यह धन का सम्मान होता है, धन वालों के गुरूर का सम्मान होता है. सेठ जी का सम्मान मंदिर में भी होता था. हर रोज नई रंगबिरंगी पगड़ी पहने सेठ जी के आगमन पर सभी पुजारी सचेत हो जाते थे और भगवान से ज्यादा आवभगत करते थे, शायद कभी उन पर मेहरबान हो जाएं, तो लाखों नहीं तो हजारों तो मिलेंगे ही!
उस दिन भी सेठ जी सज-धजकर मंदिर में पधारे, रोज की तरह उनका सम्मान हुआ और वे चले गए. रात को ‘रेड लाइट एरिया’ में रेड हुई. पता लगने पर सेठ जी भागना चाहते थे, पर भागने वाली हालत में नहीं ही थे, सो लपेटे में आ गए.
एक-एक कर मंदिर और ‘रेड लाइट एरिया’ में सम्मान पाए सेठ जी के वरक़ खुलते ही चले गए. लड़कियों की तस्करी, शराब की तस्करी, नकली शराब के ठेके, कहां नहीं थे सेठ जी के चहकते बनाम बहकते कदम!
एक चेहरे के हजार रंग उनकी रंगीनी के इश्तहार बन गए थे.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244