कविता

रात्रि

 

हमारे आपके जीवन का

एक अहम हिस्सा है रात्रि,

जिसके बिना जीवन अधूरा सा लगता है

रात्रि न हो तो इंसान

सूकून की सांस लेना भूल जाये,

विश्राम की बात उसके भेजें में भी न आये

थोड़ा और थोड़ा और करते करते करते

वह मशीन बन जाते

तन ही नहीं मन से भी तक जाते,

अपने लिए तो क्या परिवार समाज के लिए भी

वक्त न निकाल पाये।

उसकी कार्यक्षमता प्रभावित हो जाते

तन मन में स्फूर्ति तनिक न आ पाते

बेवजह मरीज बन जाये।

आराम की बात कही सोचे ही नहीं

काम कभी पूरा लगे ही नहीं

लोभ वाले से न बच पाए

मशीन से मुकाबला करने लग जाते

असमय काल का ग्रास बन जाए

यदि हमारे जीवन में

रात्रि के बाद दिन के क्रम

यदि न आते जाते।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921