उम्र की सच्चाई
इतनी लम्बी उम्र मिली है , पर जीने का वक़्त नहीं,
रिश्तों की भरमार है पर रिश्तों का अस्तित्व नहीं ,
चेहरे पे मुस्कान सभी के, दिल में क्या है स्पष्ट नहीं,
झूठी तारीफों के पुल पर , सच्चाई का वक्तव्य नहीं,
जेब की दौलत लुटवाओ तो, यारों की है लाइन लगी,
पर मुश्किल में मदद मांग लो, फिर तो कोई साथ नहीं.
खून के रिश्ते खून हो गए,अब साँझा बहता रक्त नहीं
रिश्ते नाते मार दिए सब,पर दफ़नाने का वक़्त नहीं ,
मंदिर मस्जिद जहाँ भी देखो जन मानस की भीड़ लगी,
प्रभु के आदर्शों पर जीवन, जीने वाले पर भक्त नहीं ,
सुख में सब लगते हैं अपने, लगते है आसक्त सभी,
पर जब खोजा दुःख में हमने ,मिले हमें विरक्त सभी
अपना अपने को पहचाने ,गए वक़्त की बातें हैं,
जीवन रस की चाह सभी को, पर पीने का वक़्त नहीं,
— जय प्रकाश भाटिया