जवानी
कुछ लोग
कभी नहीं होते बूढ़े
मरते दम तक
ये जीते हैं
जवानी के भ्रम में,
कई किस्में है
इन बूढ़े ‘जवानों’ की
न कलमकार बूढ़ा होता है
न काले कोट वाले या सफेद पोश,
न ठेकेदार, समाजसेवी, चोर-डकैत, तस्कर
और नेता, अपराधी, दलाल,
न संत-महंत-मठाधीश
और सेठ-साहूकार
या धंधेबाज अफसर,
जनता की
जवानी छिनकर
ये लगे रहते हैं
खुद को जवान
बनाए रखने की जुगत में
मरते दम तक,
जवानी में ही बूढ़ी, अधमरी हो जाती है
तो बेचारी जनता
इनकी नाजायज ऐषणाओं का शिकार होकर।
— डॉ. दीपक आचार्य