स्वास्थ्य

रोगों का निदान योग से सम्भव है

सृष्टि के आरम्भ में प्रकृति ने  प्रत्येक कार्य सुनियोजित ढंग से किया । हमारी भारतीय संस्कृति की परम्परा में ऋषि – मनीषी कठिन तपस्या कर ब्रह्म को प्रसन्न करने का प्रयास करते रहे । अनेक धर्म ग्रंथों में मनीषियों ने योग शिक्षा पर अधिक बल दिया । उनका मानना था कि योग के माध्यम से शरीर को क्रियाशील बनाये रखने के लिए अध्यात्म की ओर झुका जा सकता  है । योग संस्कृत के युज धातु से बना है इसका अर्ध है मिलाना, जोड़ना, बढ़ना अनुभव को पाना तथा तल्लीन  होना महर्षि पंतजलि ने कहा मन की वृत्तियाँ– रूप, रस गंध, शब्द के लोभ में दौड़ने को रोकना ही योग है , अर्थात चित्त की चंचलता का दमन करना ही योग है । श्रीमदभगवतगीता में भगवान श्रीकृष्ण ने योग का अर्थ समझाते हुए कहा कि  जहाँ साधक और साध्य दोनों का एक ही शब्द व्यवहार हो वहां योग शक्ति उत्पन्न हो जाती है । स्वामी विवेकानन्द ने देशकी युवा पीढी को अपने जीवन में आत्मसात करने पर बल दिया महान दाशर्निक अरविन्द घोष ने योग के द्वारा उपनिषद, गीता, वेद आदि का ज्ञान प्राप्त कर ईश्वर तक पहुचने का मार्ग नवयुवकों को बताया । एकाग्रता   से ही जीवन के प्रति दृष्टिकोण को समझा जा सकता है ।  महात्मा बुद्ध; साधना के बल ही संसार को ज्ञान दिया । आध्यात्मिक चिन्तन तथा योग से ही  मनुष्य का शारीरिक, मानसिक, बौध्दिक   विकास सम्भव है जोकि मनुष्य के जीवन के लिए आवश्यक है तथा आध्यात्मिक चिन्तन, मनन की चेतना जाग्रत अवस्था मे संचालित  होती है । प्रत्येक रोग के लिए विशेष आसन है, रोग विशेष के उपचार के लिए अलग–अलग आसन हैं । बहुत से ऐसे रोग हैं जिनका उपचार डॉ. की समझ से परे है । ऐसे रोगों का इलाज आसन से भी सम्भव है आसन किसी योग अनुभवी के निर्देशन में ही करना चाहिए । किसी बीमारी की दवा लेने पर उससे रोग कुछ समय के लिए दब जाता है लेकिन उसके प्रभाव से अनेक बीमारियाँ उत्पन्न हो जाती हैं । हमारे शरीर में इतनी ऊर्जा  है कि शरीर के विकारों को स्वंय बाहर कर पुन स्वस्थ हो सकते हैं । इसके लिए किसी व्यायाम को करने के लिए जहाँ समय अधिक् चाहिए वहीं योगासन करने के लिए ज्यादा समय की आवश्यकता नहीं होती । यदि हम रोज आठ आसन करें तब भी दो-दो मिनट एक आसन को दिया जाये तब भी सोलह मिनट में सभी आसन पूरे हो जाएंगे ।  इतने कम समय में व्यक्ति आसनों को कर स्वस्थ एवं निरोग रह सकता है ।
योग शरीर को रोगमुक्त रख मन को शान्ति प्रदान करता है तथा योगासन के माध्यम से शरीर में थकावट भी अनुभव नहीं होती । योग आज एक थैरेपी के रूप में भी उपयोगी हो चुका है । योग में प्रमुख गुण ध्यान का रहता है ध्यान से हम असाध्य रोगों पर भी विजय प्राप्त की जा  सकती  है । आज असाध्य रोगों का इलाज योग से सम्भव है मनुष्य के लिए योग एक साधन ही नहीं अपितु शरीर को स्वस्थ व जागरूक कर सकते हैं क्योंकि स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है । बिना ज्ञान के हमारा जीवन पशु तुल्य है। मानव संवेदना  के द्वारा विभिन्न योगों के माध्यम से  आतंरिक और बाह्य गुणों के आधार पर समाज में एक प्रेरणा शक्ति तथा  नवचेतना जाग्रत कर सकते हैं ।
=- डॉ पूर्णिमा अग्रवाल

डॉ. पूर्णिमा अग्रवाल

मैं अम्बाह पीजी कॉलेज में हिंदी की सहायक प्राध्यापिका के रूप मैं पदस्थ हूँ। मेरा निवास स्थान सदर बाजार गंज अम्बाह, मुरैना (म.प्र.) है।