लघुकथा – नास्तिक
“आज दीपक बाबू को अहले सुबह मंदिर परिसर में झाड़ू लगाते लोगों ने देखा।” पत्नी ने चाय की चुस्कियाँ लेते हुए कहा।
“क्या बात करती हो। आज तक किसी ने उन्हें मंदिर में पूजा करते हुए नहीं देखा है।” पति को भी आश्चर्य हो रहा था
“असल में बांग्ला जेठ महीने में हर मंगलवार को औरतें मंगल चंडी की पूजा करने जाती है मंदिर । लेकिन किसी की नजर नहीं है मंदिर के आसपास जमा हो गए कूड़े कचड़ों पर। मुझे लगता है इसी लिए दीपक बाबू…।
“लोग तो उन्हें नास्तिक समझते हैं।”
“लोग कुछ भी समझे, दीपक बाबू की अपनी एक अलग पहचान है।” पत्नी ने दो टूक शब्दों में कहा।
— निर्मल कुमार दे