कविता

गौमाता की आह

 

आधुनिकता की चपेट में

आज हम सब आते जा रहे हैं,

लगता है हम सब मानव

मानसिक विकलांग होते जा रहे हैं।

तैंतीस कोटि देवी देवता

जिसमें वास करते हैं

उस अपनी गौमाता को हम

अब बिसराते जा रहे हैं।

गौमाता की अहमियत से

अंजान तो नहीं हैं हम सब,

फिर क्यों आज हम आप

गुमराह हुए जाते हैं सब।

आधुनिकता की चपेट में

हम क्या क्या खोते जायेंगे ?

जन्म लेते ही क्या हम आप

अपनी मां को भी भूल जायेंगे?

वैसे भी क्या कहें हम किसको

कल को हम आप खुद को भी

जानबूझकर भूल जायेंगे।

गौमाता तो वैसे भी मूक होकर

सब चुपचाप सहती जा रही है,

पर उसके हृदय से निकली आह

क्या हम आप सब सह पायेंगे?

 

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921