स्पर्श
उस अचानक स्पर्श का अहसास
अंर्तमन के तार झनझना गया,
खुशियों का नव भाव जगा गया।
शायद इसीलिए कि ये मेरी कल्पना
या मेरे भाग्य में नहीं था
फिर भी ऐसा आत्मीय स्पर्श
अचानक या गलती से ये सौभाग्य मिल गया।
आंखें नम हो गईं, शब्द मौन हो गए
होंठ महज थरथरा कर रह गए,
शायद इस सुखद अनुभव से
वंचित होने के डर से ठिठक गए।
पर ये क्या हो गया पर भर में ही
वही हुआ जिसका डर रहा था
स्पर्श का वो मीठा अहसास मिट गया,
ऐसा लगा मैं आसमान से नीचे गिर गया
जैसे अपनी औकात में फिर से आ गया।
चलिए कोई बात नहीं
मेरे जीवन की सुखद अनुभूतियों में
एक अदद स्पर्श का ये अध्याय जुड़ गया
शायद पहला और अंतिम अध्याय है इस जीवन का
पर ये स्पर्श मेरे जीवन का
मधुर संगीत सा लगने लगा है।
जिसका अनुभव सिर्फ मैं कर सकता हूं
किसी से चाहकर भी बांट नहीं सकता
जीवन के इस अद्भुत अमृत भाव से
कभी वंचित भी नहीं होना चाहता
इस स्पर्श के अनुभव के साथ ही
शेष जीवन गुनगुनाते हुए बिताना चाहता हूं।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश
© मौलिक स्वरचित