ग़ज़ल
मैं ये तो नहीं कहता कोई अच्छा नहीं होगा
मेरे बाद लेकिन कोई भी मुझसा नहीं होगा
चुराएंगे यहाँ कई लोग अंदाज़-ए-सुखन मेरा
उनका कद मेरे कद से मगर ऊँचा नहीं होगा
नहीं लगने दिया कोई दाग खुदगर्ज़ी का सारी उम्र
फट जाएगा अपना पैरहन मैला नहीं होगा
बेईमानी के दस्तरखान पर कुछ भी भले रख दो
मेहनत की रूखी रोटी से वो मीठा नहीं होगा
वक्त की मार से झुक जाएगा इक दिन बदन मेरा
मेरे अंदर का बच्चा पर कभी बूढ़ा नहीं होगा
— भरत मल्होत्रा