गीतिका
टूटे हुए सपनो को अपने जोड़ रहे हैं
अन्जान दिशाओं की तरफ दोड़ रहे हैं
उम्मीद का दिया जब बुझता हुआ दिखा
विश्वास का दीपक जला के छोड़ रहे हैं
आँखों से आंसू और हम बहने नही देगें
नयनो का नीर इस लिए निचोड़ रहे हैं
उनको किया है दूर अपने आसपास से
जो आस, मनोबल हमारा तोड़ रहे हैं
किस बात की कलह है क्यों बैर भाव है
बिन बात ही आपस में क्यों सिर फोड़ रहे हैं
कैसे करेगें न्याय की उम्मीद हम वहाँ
सच को जहां पे तोड़़ वो मरोड़़ रहे हैं
— शालिनी शर्मा