कविता

वाह डॉग बॉस, वाह केट आंटी

जब-जब भी
मलाई, मक्खन और मुद्राओं भरे छींके
नज़र आ जाते हैं कहीं भी,
तब-तब
इनकी गंध पाकर
घोर शत्रु माने जाने वाले
कुत्ते और बिल्ले-बिल्लियाँ
यों ही
एक-दूसरे के मददगार बन
पा जाते हैं
वह सब कुछजो औरों के भाग्य का होता है
अथवा औरों के लिए संरक्षित-सुरक्षित।
यहाँ-वहाँ सभी जगह
आजकल
यही तो हो रहा है
कुत्तों और कुत्तियों के साथ
बिल्लों और बिल्लियों के खेल में,
जिसमें
कभी कुत्ते और कभी बिल्लियां
कर लिया करते हैं
एक-दूसरे का उपयोग
कभी नौटंकी और
कभी अप्राकृतिक उपभोग में,
यों ही चल निकलता है
इनका जीवन-व्यापार
और
बेचारे आम लोग
जिन्दगी भर
चूहों की तरह
टुकर-टुकर कर
देखते ही रह जाते हैं
इस अजीब तमाशे को
जमीन सूंघते-सूंघते…..।

— डॉ. दीपक आचार्य

*डॉ. दीपक आचार्य

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