परिवार के लिए
परिवार के लिए
पिछले कुछ दिनों से बड़े बाबू गुमसुम से रहने लगे थे। उन्हें एक ही चिंता खाए जा रही थी- ‘‘क्या होगा इस परिवार का …… ? अभी तो वेतन से जैसे-तैसे गुजारा हो जाता है, लेकिन अगले महीने रिटायर होने के बाद …… ? पेंशन में मिलेगा ही कितना …… ? मकान भाड़ा, बेटे की तो खैर कोई बात नहीं पर दो-दो बेटियों की शादी …… ? बीमार पत्नी की दवा दारू का खर्च …… ? कहाँ से आएगा इतना पैसा …… ? फिर यदि उन्हें कुछ हो गया तो …… ? क्या होगा …… ? प्रावीडेण्ट फण्ड …… बेटे को अनुकम्पा नियुक्ति …… पत्नी को पेंशन …… बेटियों की धूमधाम से शादी …… अब ये बूढ़ा शरीर और कर भी क्या सकता है …….? अपने परिवार की खातिर …….
कुछ दिन बाद अखबार में बड़े बाबू की सड़क दुर्घटना मेें असामयिक मृत्यु का समाचार पढ़ने को मिला।
-डाॅ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़