लघुकथा – कालू
बकरीद से 10 दिन पहले अब्दुल के घर में एक बकरा खरीदकर लाया गया। काले रंग का सुन्दर बकरा उसके बच्चों को बहुत अच्छा लगा। उन्होंने बड़े प्यार से उसका नाम कालू रखा। बहुत अच्छी तरह कालू का लालन-पालन होने लगा।
बकरीद वाले दिन जब कालू को कुरबानी के लिए ले जाये जाने लगा, तो बच्चों ने बहुत हंगामा किया। वे कालू से लिपट गये और उसे नहीं ले जाने दिया। इस पर कुरबानी करने का इरादा छोड़ दिया गया। बच्चों ने उस दिन रोटी-सब्जी का लंच किया और खेलने चले गये।
शाम को जब वे खेलकर लौटे, तो उन्हें कालू दिखायी नहीं दिया। पूछने पर बताया गया कि वह चरने गया है। जल्दी ही लौट आएगा।
रात के खाने में बच्चों ने मटन बिरयानी का आनन्द उठाया। कालू तब तक भी नहीं लौटा था। इसलिए बच्चों ने पूछा कि कालू कहाँ हैं? उत्तर मिला- ‘तुम्हारे पेट में।’ यह सुनकर बच्चे सन्नाटे में आ गये।
— डॉ. विजय कुमार सिंघल