सपना
सपना
विद्यालय का वार्षिकोत्सव चल रहा था। सभी बच्चे बहुत प्रसन्न थे। सुबह से शाम तक विभिन्न प्रकार के खेलकूद तथा सांस्कृतिक प्रतियोगिताएँ आयोजित हुए। उसने भी इन सबमें बढ़-चढ़कर भाग लिया था। पुरस्कार वितरण हेतु क्षेत्र के विधायक महोदय पधार चुके थे। एक-एक कर विजेताओं को विधायक जी पुरस्कृत करते जा रहे थे। प्रधानपाठक विजयी छात्रों का नाम पुकारते जा रहे थे।
‘‘और अंत में मैं माननीय विधायक जी निवेदन करूँगा कि वे हमारे विद्यालय के सर्वश्रेष्ठ छात्र को अपने कर-कमलों से शील्ड प्रदान कर सम्मानित करें, जिसने पिछले सत्र की बोर्ड परीक्षा में जिले में प्रथम स्थान प्राप्त करने के साथ-साथ वार्षिकोत्सव में आयोजित विभिन्न प्रतियोगिताओं में से तीन में प्रथम स्थान प्राप्त किया है। और उस छात्र का नाम है- चुन्नीलाल।’’
उसकी खुशी का कोई ठिकाना न था। वह शील्ड लेने जा रहा था। वह उड़ा जा रहा था। मानो उसके पंख लग गये हो।
तभी किसी के जूते की ठोकर से उसकी आँख खुल गयी। बड़े मालिक बड़बड़ा रहे थे। ‘‘अबे, चवन्नी उठ्ठ, स्साले। कब तक सोता रहेगा। चल जल्दी से रात का बर्तन साफ कर दे। नल भी खुल गया है, फिर पानी भी भरना है।’’
और चुन्नीलाल उर्फ चवन्नी का सपना सपना ही रह गया। वह सोच रहा था काश ! सपने भी सच होते।
– डाॅ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़