कहानी

उसका भाई

उस से मेरी मुलाक़ात कोई ज्यादा पुरानी न थी , और  बिल्कुल नई भी नहीं थी . उससे मेरा पहला परिचय पिछले कुछ महिने पहले ही हुआ था । लेकिन ये इत्फाक से ताआरूफ सिर्फ ताआरूफ ही रहा दोस्ती या अपनाईत में तब्दील नहीं हो सका , कुछ दिनो से उससे बाते करने और मिलने बोलने और सुनने का मौका मिला , और इन मौके पर उसको करीब से समझने और जानने की नाकाम कोशिश मैने जरूर की है यानि मैं उसकी ज़िन्दगी का हर सफ़र हर लफ्ज़ पढ़ने की कोशिश करता रहा , मैं प्यार मुहब्बत का बिल्कुल कायल न था, मगर उससे मिलने के बाद मेरा जीने का अन्दाज़ बदलता चला गया मेरी सारी तबज्जो मुहब्बत शब्द पर मरकूज़ होकर हर वक्त उसके ख्यालों मे गुम रहने लगा ,मैने प्यार को जिस्मानी भुख से अलग करके देखा है, यानि पवित्र और पाक मुहब्बत ही मेरे दिल का हिस्सा थी , धीरे धीरे मुलाकाते अपना असर दिखाने लगी, और मैं उसकी जादूगरी मे गियस्तार होता चला गया ,लेकिन उसके ख्यालात मे मुझे साफ गोई और पाकीजगी साफ साफ नज़र आती थी उसके जज़्बात में इन्सानियत थी तो मासुमीयत की भी कोई कमी मुझे नज़र नहीं आती थी लेकिन उसके दिल मे एक छिया छिया दर्द भी मैने महसूस किया था अच्छी गुफ्तगु बगैर कोशिश के या इरादे के दो इन्सानो को हमेशा.करीब लाती चली जाती है । मुझे उसकी बाते करने का अन्दाज़ इतना लुभाने लगा था कि मैं नींद में भी उसकी आवाज़ हर जगह महसूस  करने लगा था उसके जज़्बात,
              इतने.खुबसुरत होते थे कि मेरे वजूद को पिघलाने लगते थे लेकिन मैने महसूस किया कि वो कभी होश से बाहर नही गई उसकी दानिश मंदी मेरी अक्ल पर भारी पड़ती नज़र आती थी , उसने एक बार कहा था क्या ख़्वाब देखना बुरी बात हे मैने कहा नहीं क्या किसी को पाकर खो देना आसान होता है , और यह कहते कहते वाकई कही आसमानों  मे खो गई उसकी आखे नम हो गई थी उसकी यै हालत देखकर मै तड़प उठा लेकिन मेरी ज़बान भी हरकत न कर सकी जैसे मेरे पास कोई शब्द नही थे ये मेरे अहसास पर किसी ने पहरा लगा दिया था मै बहुत कुछ कहना चाहता था और मेरे हाथ उसके चेहरे की तरफ उठते उठते रह गये जैसे मेरे वजूद ने जब्त से काम ले लिया हो बड़ी कोशिश के बाद मेरे लबों ने हरकत की तो मेरी ज़बानसे बस उसका नाम निकला बस ज्यादा कुछ बोल ही न पाया दि लमे जो जज्यात व एहसासात का एक तूफ़ान सा उठने लगा जी चाहताथा की उससे बहुत सारी बाते करू उसे बता दूं कि मेरी ज़िन्दगी का तुम मरकज़ बन गई ही लेकिन  वक़्त की नज़ाक़त ने मुझे ख़ामोशी का लिवास उड़ा दिया था, मै जानता था वो एक शादी शुदा औरत है ,अपने सुहाग की अमानत भी फिर वो मेरे दिल से निकलने का नाम ही न ले रही थी ,मै उसके दर्द की गहराइयो में उतरना चाहता था , जानना चाहता था उसकान दर्द और बीच की हर दीवार को गिराकर साफ़ साफ़ बात करन चाहता था लेकिन ये क्या मेरे दिल से आवाज़ आई तु गलत सोच रहा है ,कौन है वो दीवार , दीवार तो तु ही है , नही ये झुठ है मैं दीवार नही हुं तभी मोबाईल में मेसेज आने का एलर्ट दिखा तो मैने बेमन से मोबाईल का मेसेज खोला तो देखा ये उसका ही मैसेज था लिखा था सुनिये क्या हो रहा में कल आपको अपने मम्मी पापा के यहां मिलूगी क्योकि रक्षा बन्धन मै मुझे मायके जाना है आपका मै वही पापा के घर पर इन्तज़ार करूंगी आप जब चाहे , रक्षा बन्धन पर न आए तो मै गुस्सा हो जाउंगी मेरे दिल में फिर कशमक्श होने लगी क्योकि रक्षा बंधन में कोई ज़्यादा दिन नही बचे परसों ही तो रक्षा बंधन है मेरा दिल हिलोरे मारने जगा फिर वो दिन आ ही गया और मै खुद को तैयार करके कई बार आइने के सामने संवारता रहा और फिर तैयार होकर उसके पापा के घर पहुंच गया जहाँ मेरा जाना पहली बार हो रहा था में जैसे ही पहुचा मुड़ लगा सारा परिवार मेरो ही इस्तकबाल में खड़ा है थोड़ी देर मे मै भी सभी परिवार के बीच बैठा हुआ था इधर उधर की बातो के बाद सबने मिल जुलकर भोजन किया इसी बीच आपसी ताआरूक भी हुआ जैसे ही मैं भोजन करके हम बापस दुसरे कमरे में जा बैठे वहां जैसे ही पहुंचा मैने देखा बहुत सी तस्वीरे लगी थी जिसको देख कर मेपहले तो घबरा सा गया जैसे मेरी ही तस्वीरें दीवारों पर लगी थी हुबहु लेकिन मेरी एक तस्वीर पर स्वर्गीय लिखा था मुझे लगा जैसे मैं मर चुका हु यक़ीनन ये तस्वीर आपकी नहीं है मगर आपके जैसा जरूर है हा मैने जब पहली बार आपको देखा तो मुझे लगा मेरे भैया वापस आ गए है उसकी आवाज एसी लगी जैसे कोई मेरा गला दबाने की कोशिश कर रहा है उसकी आंखे बातें करते करते भीग गई थीं, उसका सारा परिवार खामोश था लेकिन फिर भी कही खुशियों की आहट भी नजर आ रही थी, इतने में एक खुबसुरत सी बच्ची अपने हाथो मे पूजा की थाली लेकर आगई और फिर उसने कहा आओ भैया बैठ जाइयेमै आपको राखी बांधना चाहती वर्षो बाद मैं आपको इस बंधन में बाधूगी फिर उसकी तरफ मेरा हाथ बरबस ही बड गया और राखी का बंधन मेरे हाथो मे पड़ चुका था मुझे लग रहा था ये प्यार का कौन सा रंग था जिसे मे देख नही पाया मै अंधा हूँ। वो बहुत खुश थी उसका भाई जिसका स्वर्ग वास  हो गया था, वापस लौट आया था ।
— डॉ. मुश्ताक़ अहमद शाह सहज़

डॉ. मुश्ताक़ अहमद शाह

वालिद, अशफ़ाक़ अहमद शाह, नाम / हिन्दी - मुश्ताक़ अहमद शाह ENGLISH- Mushtaque Ahmad Shah उपनाम - सहज़ शिक्षा--- बी.कॉम,एम. कॉम , बी.एड. फार्मासिस्ट, होम्योपैथी एंड एलोपैथिक मेडिसिन आयुर्वेद रत्न, सी.सी. एच . जन्मतिथि- जून 24, जन्मभूमि - ग्राम बलड़ी, तहसील हरसूद, जिला खंडवा , कर्मभूमि - हरदा व्यवसाय - फार्मासिस्ट Mobile - 9993901625 email- [email protected] , उर्दू ,हिंदी ,और इंग्लिश, का भाषा ज्ञान , लेखन में विशेष रुचि , अध्ययन करते रहना, और अपनी आज्ञानता का आभाष करते रहना , शौक - गीत गज़ल सामयिक लेख लिखना, वालिद साहब ने भी कई गीत ग़ज़लें लिखी हैं, आंखे अदब तहज़ीब के माहौल में ही खुली, वालिद साहब से मुत्तासिर होकर ही ग़ज़लें लिखने का शौक पैदा हुआ जो आपके सामने है, स्थायी पता- , मगरधा , जिला - हरदा, राज्य - मध्य प्रदेश पिन 461335, पूर्व प्राचार्य, ज्ञानदीप हाई स्कूल मगरधा, पूर्व प्रधान पाठक उर्दू माध्यमिक शाला बलड़ी, ग्रामीण विकास विस्तार अधिकारी, बलड़ी, कम्युनिटी हेल्थ वर्कर मगरधा, रचनाएँ निरंतर विभिन्न समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में 30 वर्षों से प्रकाशित हो रही है, अब तक दो हज़ार 2000 से अधिक रचनाएँ कविताएँ, ग़ज़लें सामयिक लेख प्रकाशित, निरंतर द ग्राम टू डे प्रकाशन समूह,दी वूमंस एक्सप्रेस समाचार पत्र, एडुकेशनल समाचार पत्र पटना बिहार, संस्कार धनी समाचार पत्र जबलपुर, कोल फील्डमिरर पश्चिम बंगाल अनोख तीर समाचार पत्र हरदा मध्यप्रदेश, दक्सिन समाचार पत्र, नगसर संवाद नगर कथा साप्ताहिक इटारसी, में कई ग़ज़लें निरंतर प्रकाशित हो रही हैं, लेखक को दैनिक भास्कर, नवदुनिया, चौथा संसार दैनिक जागरण ,मंथन समाचार पत्र बुरहानपुर, और कोरकू देशम सप्ताहिक टिमरनी में 30 वर्षों तक स्थायी कॉलम के लिए रचनाएँ लिखी हैं, आवर भी कई पत्र पत्रिकाओं में मेरी रचनाएँ पढ़ने को मिल सकती हैं, अभी तक कई साझा संग्रहों एवं 7 ई साझा पत्रिकाओं का प्रकाशन, हाल ही में जो साझा संग्रह raveena प्रकाशन से प्रकाशित हुए हैं, उनमें से,1. मधुमालती, 2. कोविड ,3.काव्य ज्योति,4,जहां न पहुँचे रवि,5.दोहा ज्योति,6. गुलसितां 7.21वीं सदी के 11 कवि,8 काव्य दर्पण 9.जहाँ न पहुँचे कवि,मधु शाला प्रकाशन से 10,उर्विल,11, स्वर्णाभ,12 ,अमल तास,13गुलमोहर,14,मेरी क़लम से,15,मेरी अनुभूति,16,मेरी अभिव्यक्ति,17, बेटियां,18,कोहिनूर,19. मेरी क़लम से, 20 कविता बोलती है,21, हिंदी हैं हम,22 क़लम का कमाल,23 शब्द मेरे,24 तिरंगा ऊंचा रहे हमारा,और जील इन फिक्स पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित सझा संग्रह1, अल्फ़ाज़ शब्दों का पिटारा,2. तहरीरें कुछ सुलझी कुछ न अनसुलझी, दो ग़ज़ल संग्रह तुम भुलाये क्यों नहीं जाते, तेरी नाराज़गी और मेरी ग़ज़लें, और नवीन ग़ज़ल संग्रह जो आपके हाथ में है तेरा इंतेज़ार आज भी है,हाल ही में 5 ग़ज़ल संग्रह रवीना प्रकाशन से प्रकाशन में आने वाले हैं, जल्द ही अगले संग्रह आपके हाथ में होंगे, दुआओं का खैर तलब,,,,,,,