कविता

आया सावन झूम के

धरती  प्यासी अंबर  निहारे, आओ  कहां हो  मेघा रे।
कई  दिनों से आस  ले  बैठी, मुखड़ा न  तेरा देखा रे।
तन्हा गोरी   रूप  निखारे, बरसात  ना आई  बैरन रे।
पिया मिलन को जिया धड़के,विरहन  बैठी जोगन रे।
पपीहा की सुन ले  ओ बदरा, पीहु पीहु कर पुकारे रे।
कोयल  बोली डाली  डाली, कब  मिलें नैन  नजारे रे।
सुन पुकार दौड़े मेघा आए,खुश होते धरा मुख चूमे रे।
काली  घटाएं छा गई नभ में, है आया  सावन  झूमे रे।
बिजली कड़की बादल गरजे,झमाझम बरसे बादल रे।
होंठों की लाली सूखने लगी,बहे आंखों का काजल रे।
नयन  बिछाए मैं निहारूं,अब तो आ जाओ साजन रे।
रिमझिम बरसे प्यार की बूंदे,आग लगी मेरे तन मन रे।
बारिश की  बूंदों में  भीगूँ, आ तू भी  स्नेह  बरसा दे रे।
यौवन  की  नदिया में  बहती, मुझे  किनारे लगा दे  रे।
हाथों में  हाथ  डाल सजना, बाहों के  झूले  झूला दे रे।
काली  घटाएं  छा गई नभ में, मुझे सावन में घुमा दे रे।
— शिव सन्याल

शिव सन्याल

नाम :- शिव सन्याल (शिव राज सन्याल) जन्म तिथि:- 2/4/1956 माता का नाम :-श्रीमती वीरो देवी पिता का नाम:- श्री राम पाल सन्याल स्थान:- राम निवास मकड़ाहन डा.मकड़ाहन तह.ज्वाली जिला कांगड़ा (हि.प्र) 176023 शिक्षा:- इंजीनियरिंग में डिप्लोमा लोक निर्माण विभाग में सेवाएं दे कर सहायक अभियन्ता के पद से रिटायर्ड। प्रस्तुति:- दो काव्य संग्रह प्रकाशित 1) मन तरंग 2)बोल राम राम रे . 3)बज़्म-ए-हिन्द सांझा काव्य संग्रह संपादक आदरणीय निर्मेश त्यागी जी प्रकाशक वर्तमान अंकुर बी-92 सेक्टर-6-नोएडा।हिन्दी और पहाड़ी में अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। Email:. [email protected] M.no. 9418063995