लघुकथा : जरूरी है
“पच्चीस रुपए प्रति किलो के हिसाब से हफ्ता भर के लिए ही चावल ले आना। घर में एक दाना नहीं है। ये एक सौ पचहत्तर रुपए हैं। पैसा नहीं है जी। इतना ही है।” अपनी पत्नी केकती से पैसे लेकर गोकुल प्रभात प्रोविजन स्टोर्स गया।
गोकुल चावल तौलवा रहा था। तभी उसे एक आवाज सुनाई दी। पीछे मुड़कर देखा। उसका बेटा मनीष था। वह कक्षा छठवी का छात्र था। बोला- “पापा ! मेरे लिए तीन कापी ले दो ना पच्चीस-तीस रुपए वाली। बहुत जरुरी है। सर लिवा ही लेना बोले हैं।”
कुछ देर तक गोकुल चुप रहा। पिता-पुत्र के बीच कुछ कानाफूसी हुई। फिर गोकुल दुकानदार से बोला- “सेठजी ! पच्चीस रुपए वाली तीन कापी दे दो। सौ रुपए का ही चावल दे दो सेठजी।” तभी मनीष बोला-“सप्ताह भर के लिए चावल भी तो जरूरी है पापा।”
“चलाएँगे बेटा जैसे भी।” मनीष अपने पापा गोकुल से लिपट गया।
— टीकेश्वर सिन्हा गब्दीवाला