मुक्तक/दोहा

झुके जगत का माथ

काले धन से बित रही, जिनकी हरेक रात
होती हरेक दिन वहाँ, सुख की ही बरसात
मतलब के सब यार हैं, देखो यहाँ रमेश
सोचे अपने स्वार्थ की, धर मित्रों का वेश
औरो के रस्ते यहाँ, जो जन काँटे बोय
उसके जैसा नीच फिर, जगत न जानो कोय
चापलूस बन फिर करें, राजा का गुणगान
ऐसे अशोक चक्र फिर, पाते है सम्मान
धनुष यहाँ जो तोड़ दे, सिया उसी के साथ
बाहुबली के सामने, झुके जगत का माथ
धनवाले करते यहाँ, ऊँची-ऊँची बात
निर्धन के मन पर लगे, हर पल ही आघात
अच्छे कामों का मिले, अच्छा नतीजा जान
सत कर्मी को लोक में, मिलता है सम्मान
अपने बड़ों से सदा, लीजै आशीर्वाद
बदले में मिले तुझको, प्यार भरे संवाद
पद पाकर न करें कभी, रमेश जी अभिमान
गवाह है इतिहास भी, गिरा यहाँ इंसान
पैसा जपता आदमी, देख सुबह से शाम
बना हुआ आज उसका, पैसा चारों धाम
— रमेश मनोहरा

रमेश मनोहरा

शीतला माता गली, जावरा (म.प्र.) जिला रतलाम, पिन - 457226 मो 9479662215