कविता
मुद्दत तक संभाले थे।
ऐसे भी कुछ छाले थे।।
जग ने प्रेम कहानी के।
कच्चे ख्वाब धो डाले थे ।।
सांपों से जहरीले थे।
जो भी हमने पाले थे।।
उनको वो खत मिले नहीं ।
प्यार में जो लिख डाले थे।।
सच की जो गवाही देतीं।
उन आंखों पर जाले थे ।।
जिस पाले में सत्ता आई ।
मौज में समधी साले थे।।
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई।
अपने-अपने पाले थे ।।
सत्ता के हथियारों में।
मस्जिद और शिवाले थे ।।
‘दर्द’ खा गए फसलें सारी।
जिनके खेत हवाले थे ।।
*****अशोक दर्द