कविता – अन्तर मन को पहचानें
सच ही है हम नहीं सोचते,
अपने को हम नहीं जानते
हैं क्या और क्या करना है
हमें सच्चाई पर चलना है
काम, क्रोध,लोभ और माया
इनके कारण सत्य गंवाया
बिना सोचे झगड़ा करते हैं
झूठ फरेब में उलझे रहते हैं
सच्चाई को नहीं जानते
मन जो कहता वही मानते
अच्छा हो, अपने को जानें
अंतर्मन को हम पहचानें
यदि हम स्वयं जाग जायें
तभी जीवन सुखी बनायें
— डा.केवलकृष्ण पाठक