गीतिका
आपकी आवारगी ने खो दिया मुझे
मैं जल गई हूं खाक उठाना फिजूल है।
ग़म मिलें आहें मिलें और तन्हाइयां मिलें
आंसू मिलें मोहब्बत का यही तो उसूल है।
चाहत थी आसमां की जमीं भी नहीं मिली
किस्मत से जो मिलेगा मुझे सब कुबूल है।
यूं आप मिटाकर मुझे तोहमत न लीजिए
मिट जाएगी खुद जिंदगी मिट्टी है धूल है।
कभी जिंदगी की राह में हम साथ चले थे
ये वक्त का करम था या अपनी भूल है।
कहते हैं इश्क जानिब गुलाब है मगर
महसूस हमने जितना किया ये बबूल है।
— पावनी जानिब