मुक्तक
खाली हाथ लेकर चले जो फिर काहे का रोना है,
जानते सब कुछ थे पहले से क्या पाना क्या खोना है,
फिर भी मोह जाल में फंस कर जीवन को बर्बाद किया,
अब हाथों को देख रहा जब मृत्यु शैय्या पर सोना है।
दो हाथ ईश्वर ने दिए, कितना काम कर सकते हैं,
करके मेहनत हाथों से, जग में ऊंचा नाम कर सकते हैं,
करें भला औरों का भी, तो फिर सोचो क्या बात हो,
घर बैठे जग कल्याण से,अनोखे चारों धाम कर सकते हैं।
— कामनी गुप्ता