कविता

गुनाह

कभी हमने भी
मोहब्बत का गुनाह किया था।
तुमसे मिलकर हमने
खुद को खुद से
जुदा किया था।
हर पल देखते थे तुमको
सोचते थे तुमको
इश्क में तुम्हारे हमने
अपने मस्तिष्क को भी
फ़िदा किया था।
कभी हमें भी
किसी की दिलकश
अदाओं ने घायल किया था।
कभी हमें भी
किसी की मुस्कुराहट भरी
आंखों ने क्याल किया था।

— राजीव डोगरा

*डॉ. राजीव डोगरा

भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा कांगड़ा हिमाचल प्रदेश Email- [email protected] M- 9876777233