चली कागजी रेल
सड़कों पे पानी भरा ,चली कागजी रेल ,
आओ हमतुम खेल लें ,बचपन वाले खेल।
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रिमझिम जी का शोर है ,बादल की झंकार ,
बिजली कड़की जोर से ,शीतल चली बयार।
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बरखा जी का आगमन ,खुशियां करे बहाल ,
हरियाली से हो गई ,धरती मालामाल।
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तेज हवाएं चल रही ,मौसम हुआ मलंग ,
भागी गरमी की तपन ,बिखरे बरखा रंग।
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बागों में खिलने लगे ,रंग रंग के फूल ,
बरखा में सब हो गए ,मस्ती में मशगूल।
— महेंद्र कुमार वर्मा