मौसम
जो हुआ करती थी पहले,अब है वो बात नहीं
भावनाएं जो जुड़ी थी रिश्तों में,खो गयी कहीं
औपचारिकता से हो गए रिश्ते,अपनापन नहीं
पास होकर भी दूर हैं हम,वो बातें खो गई कहीँ
होने को सब कुछ है यहाँ, पर लगता मन नहीं
बाहर पसरा हुआ है सन्नाटा,अंदर है शोर कहीं
बहुत हैं बातें कहने को,अब हिम्मत होती नहीं
हर बात पर बैठा हुआ है मसला कहीं न कहीं
कैसा है ये साथ जहाँ अब हाथों में हाथ नहीं?
अपना अपना कोना पकड़े,घर खो गया कहीं
हर पल ये रुख बदले, ऐसा मौसम देखा नहीं
प्यार मौसम ,गीतों की शाम,गुम हो गई कहीं
— आशीष शर्मा ‘अमृत