लघुकथा

लघुकथा – उपेक्षा

अभि बचपन से ही पढ़ने- लिखने में बहुत अच्छा और मिलनसार स्वभाव का था। वह पिता के सलाह के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलाता था ।एक तरफ जहां वह शिक्षक- शिक्षिकाओं का लाडला तो ना जाने कितनी लड़कियों का सोना था।
उसे एक बार विद्यालय की सबसे सुंदर लड़की मंजू से प्यार हो गया और उसकी इच्छा अनुसार पिता ने भी दोनों का विवाह खुशी-खुशी करवा दिया। सभी खुश थे।
अचानक एक दिन अभि का तबादला की सूचना मिली। यह सुन पिता चिंतित हो गए और उन्होंने भी वी- आर -एस लेकर बेटे के साथ ही रहने का निशचय किया। वहां जाकर मंजू को भी कंप्यूटर डिपार्टमेंट में नौकरी मिल गई ।जिससे वहां के घर की सारी जिम्मेदारी माता- पिता को ही उठानी पड़ती। वक्त- बे -वक्त पिता को यह बुरा भी लगता।
एक दिन मंजू अभि से बोली– सारा दिन दफ्तर का काम करके फिर घर आओ तो इन बुढा- बुढ़ियो की सेवा करो। कौन आजकल ऐसा होगा जो अपनी नौकरी छोड़ दें। कितनी मुश्किल से तबादला हुआ , तो सोचा आराम मिलेगा लेकिन कहां? दोनों में इन बातों को लेकर कहा- सुनी भी हो गई।
एक दिन मां के कहने पर पिताजी अभि का टिफिन लेकर दफ्तर पहुंचे। वहां बहू को देख पिता ने कहा– “बहू, यह टीफिन तुम दोनों के लिए! “
बहू ने तिरछी मुंह से कहा —पिताजी ,इतनी हमारी चिंता अब मत कीजिए । यदि चिंता होती तो नौकरी छोड़ कर यहां आ न बैठते। यह बात सुन पिता के चेहरे की हवाइयां उड़ गई और बोले –यह क्या बोल रही हो तुम?
…नहीं, कुछ नहीं ।
पिता उदास मन से लौटते हुए वह खाना भिखारियों में बांट दिए। अगले दिन पुनः मां बोली — ऐ जी अभि का टिफिन पहुंचा दीजिए। !वह भूखा होगा…।
…नहीं मैं नहीं जाऊंगा “हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारा बेटा अब बड़ा हो गया है, उसकी ख्याल रखने के लिए उसकी पत्नी आ चुकी है”
… वह तो ठीक है लेकिन हुआ क्या?
…” हुआ नहीं होने का डर है”।
… कहीं मेरे नौकरी छोड़कर यहां आने का फैसला गलत तो नहीं !
दिन -पर- दिन रिश्ते और बिगड़ते भी चले गए ।
बुरे बर्ताव से दुखी होकर माता-पिता दोनों किराए के मकान में रहने लगे। पिता दुकान में मजदूरी कर चार पैसे कमा लेते हैं, उसी से दोनों का जीवन यापन चल जाता।
अब मंजू गर्भवती हो गई ।उसके लिए मियां- बीवी का काम भी पहाड़ लगने लगा।
माता-पिता दोनों यह खुशी की खबर सुन उससे मिलने गए। अभि ने भी डॉक्टर की सारी बात बताई। फिर वह झुकी हुई नजरों से मां को बोला– यदि आप कुछ दिनों के लिए यहां रुक जाती तो बहुत अच्छा होता।
मां ने मुस्कुराकर कहा— बेटा यह संभव नहीं है ,मैं बीच-बीच में मिलने जरूर आ जाऊंगी। हम वही ठीक है। मां के जवाब ने पिता के चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट ला दी,पर मंजू उदास हो गई ।
पिता ने उठकर कहा– अभि अपना और बहू का ख्याल रखना। लेकिन बेटा कभी भी किसी रिश्ते की उपेक्षा मत करना ,न जाने कब कहां किसकी जरूरत पड़े।
यह कह वह दोनों वहां से चल दिए …।
— डोली शाह

डोली शाह

1. नाम - श्रीमती डोली शाह 2. जन्मतिथि- 02 नवंबर 1982 संप्रति निवास स्थान -हैलाकंदी (असम के दक्षिणी छोर पर स्थित) वर्तमान में काव्य तथा लघु कथाएं लेखन में सक्रिय हू । 9. संपर्क सूत्र - निकट पी एच ई पोस्ट -सुल्तानी छोरा जिला -हैलाकंदी असम -788162 मोबाइल- 9395726158 10. ईमेल - [email protected]