भीतर
मुझे कविता में
नया दौर सीखना है।
मुझे मोहब्बत में
अभी ओर सीखना है।
चिलमलाहट सी होती है
भीतर ही भीतर
नए शब्दों को सीख कर
मुझे नए भावों का आयाम
अभी ओर सीखना है।
दबी हुई बातें हैं कुछ भीतर
जो दबा देती है
सदैव ही अस्मिता को मेरी
निकालकर उनको बाहर
अभी नया जहान जीना
अभी ओर सीखना है।
— राजीव डोगरा