गीतिका
हाथों में गरल तीर हैं , षड्यंत्र भरा मन ।
ऐ व्याध ! तुझे शाप है, निश्चित तेरा पतन ।
पाषाण हृदय को कभी पिघला नही सके,
मरते हुए कुरंग के आँसू भरे नयन।
खुशियों का तू शिकारी ,उपवन का शोक तू,
ईश्वर का न्याय है अटल , होगा तेरा दमन ।
भोले मृगों का मारना व्यवसाय है तेरा ,
कब तक करेगा नीच तू लोहू से आचमन ?
फूटेंगे ये नयन तेरे मृगया की खोज में ,
चेहरे पे कोई नाग करेगा गरल वमन ।
यह पाप एक दिन तेरे,तड़पायेंगे तुझे ,
बोये हैं तूने शूल तो ,होंगे कहाँ सुमन ?
—– ©डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी